UP Polytechnic PT-1 Previous Year Question paper | Production Technology – 1 Question PDF

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Question Answer paper

 प्रश्न 1- धातु लेपन प्रक्रमों के मूल उद्देश्य क्या हैं? बताइये।

उत्तर- धातु लेपन प्रक्रमों के मूल उद्देश्य : धातु लेपन प्रक्रमों के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं

(i) सतहों को बाह्य रूप से चमकदार बनाना।

 (ii) सतहों को संक्षारणरोधी बनाना।

 (iii) सतहों को घर्षणरहित बनाना। 

(iv) सतहों को घिसावरोधी बनाना।

(v) धातु की सतह को कोई विशिष्ट गुण जैसे विद्युत कुचालकता, इत्यादि प्रदान करना। 

(vi) उपयोग के कारण घिसकर कम हुई विमाओं कोबढाकर अभीष्ट आकार बनाना।

धातु फुहारन- यह एक ऐसी धातु लेपन प्रक्रम है, जिसमें जस्ते अथवा किसी अन्य उपयुक्त धातु के तार को पिघलाकर फुहार के रूप में धातु पृष्ठ पर लेपन किया जाता हैं। धातु फुहार बनाने के लिये धातु फुहार गन नामक युक्ति का प्रयोग किया जाता है।

गैल्वेनीकरण- इस प्रक्रम में धातु पृष्ठों पर जस्ते की परत चढ़ाई जाती है ताकि पृष्ठों को संक्षारण रोधी बनाया जा सके। गैल्वेनीकरण का प्रक्रम का मुख्यतः प्रयोग धातु चादर, तार, टंकी, पुल समुद्री जहाज, घरेलू सामान (बाल्टी, भगौना, टब) इत्यादि के पृष्ठों पर जस्ते का लेपन करने में होता है।

विद्युत लेपन- इस प्रक्रम में धातु के पृष्ठ पर किसी अन्य उत्कृष्ट धातु की एक दृढ पर विद्युतीय विधि से चढ़ाई जाती है। विद्युत लेपन का सिद्धान्त विद्युत अपघटय घोल के अपघटन के सिद्धान्त पर आधारित है।

एनोडीकरण- यह प्रक्रम ऑक्साइड लेपन की एक विद्युत रासायनिक विधि है जिसमें धातु पृष्ठों का ऑक्सीकरण किया जाता है।

प्रश्न 2- उत्पादन की विभिन्न विधियों के बारे में लिखें तथा उनकी उपयोगिताओं को समझाइये। (U.P. B.T.E. 2011, 13, 14) 

उत्तर- उत्पादन की विधियों को निम्नलिखित पाँच भागों में वर्गीकृत किया गया है।

  1. धातु प्ररूपण प्रक्रम (Metal Farming Process) – इस वर्ग के अन्तर्गत निम्नांकित प्रक्रमें आती हैं

(a) फोर्जन (Forging)

(i) घन फोर्जन (Hammer Forging)

 (ii) पात फोर्जन (Drop forging)

 (iii) प्रैस फोर्जन (Press forging)

 (iv) अपसैट फोर्जन (Upset forging)

 (v) रोल फोर्जन (Roll forging)

 (b) बेलन (Rolling)

(i) तप्त बेलन (Hot rolling)

(ii) अतप्त या शीत बेलन (Cold rolling) 

(c) प्रैस प्ररूपण (Press Forging)

(i) अपरूपण (Shearing) 2014 

(ii) तीखी भेदन (Piercing) 2014 

(iii) छाँटन (Trimming)

 (iv) छिलाई (Shaving) 

(v) नॉचिंग (Notching) 2014

 (vi) ड्यूरिंग या रबर प्ररूपण (Guering or Rubber forming) 

(vii) एम्बॉसिंग (Embossing)

(viii) स्टैम्पन (Stamping

(ix) पंचकरण (Punching) 2014

(d) बहिर्वेधन (Extrusion)

(i) छड़ बहिर्वेधन (Bar extrusion)

(ii) नली बहिर्वेधन (Tube extrusion)

(e) नवीनतम प्ररूपण तकनीके (Newer Forming Techniques) –

(i) विस्फोटक प्ररूपण (Explosive forming)

(ii) विद्युत चुम्बकीय प्ररूपण (Electromagnetic forining)

2. पारम्परिक धातु कर्तन प्रक्रमें (Conventional Metal Cutting Processes)– इस वर्ग के अन्तर्गत निम्नांकित प्रक्रमें आती हैं

(a) ब्रोचन (Broaching)

(i) आन्तरिक सतह ब्रोचन (Internal surface broaching)

(ii) बाह्य सतह ब्रोचन (External surface broaching)

(b) गरारी विनिर्माण प्रक्रमें (Gear Manufacturing Process)

(i) गरारी हॉबन (Gear hobbing) ) 

(ii) गरारी संरूपण (Gear shaping

(iii) गरारी छिलाई (Gear shaving)

(iv) गरारी जनन (Gear generating)

(v) गरारी बर्निशन (Gear burnishing)

(c) बाह्य चूड़ी प्रक्रमें (External Threading Process) –

(i) चूड़ी भूमिकर्तन (Thread milling)

(ii) चूड़ी अपघर्षण (Thread grinding)

(iii) चूड़ी बेल्लन (Thread rolling)

(d) बेलनाकार छिद्रों का मशीनन (Machining of Cylindrical Holes) –

(i) गहरे छिद्रों तथा लघु व्यास के छिद्रों को बेधन (Drilling of deep holes and small diameter holes)

(e) मशीनन प्रक्रमें (Machining Processes)- खरादन (Turning), समतलन (planing), सरूपण (shaping), खाँचन (slotting), बेधन (Drilling), प्रबंधन (Boring), परिवेधन (Reaming), अपघर्षण (Grinding), भूमिकर्तन (milling) तथा चिराई या आराकर्तन (sawing) इत्यादि।

3. नवीनतर मशीनन प्रक्रमें (Newer Maching Processes)– इस वर्ग के अन्तर्गत निम्नांकित प्रक्रमें आती हैं

(a) यान्त्रिक प्रक्रमें (Mechanical Processes)

(i) अपघर्षी जेट मशीनन (Abrasive jet machining or A.J.M) 

(ii) पराश्रव्य मशीनन (Ultrasonic machining or U.S.M)

(b) रासायनिक मशीनन (Chemical Machining)

(c) वैद्युत-रासायनिक प्रक्रमें (Electro-Chemical Processes)

(i) वैद्युत रासायनिक मशीनन (Electro-chemical machining or E.C.M)

(ii) वैद्युत रासायनिक अपघर्षण (Electro-chemical grinding or E.C.G) )

(d) विद्युत विसर्जन मशीनन (Electric Discharge Machining or E.D.M)

(e) लेसर पुन्ज मशीनन (Laser Beam Machining or L.B.M)

(f) इलैक्ट्रॉन पुंज मशीनन (Electron Beam Machining or E.B.M).

(g) प्लाज्मा चिनगारी मशीनन (Plasma arc Machining or P.A.M)

4-धातु-परिष्करण प्रनमें (Metal Finishing Processes)

(a) होनकरण (Honing)

(b) लेहन (Lapping)

(c) अति परिष्करण (Super finishing)

(d) पॉलिशीकरण (Polishing)

(e) ब्रफकरण (Buffing)

5-धातु लेपन प्रक्रमें (MetalCoating Processes)

(a) धातु फुहारन (Metal spraying) 

(b) गैल्वेनीकरण (Galvanisation)

 (c) विद्युत लेपन (Electroplating)

(d) एनोडीकरण (Anodising)

 प्रश्न 3- उत्पादन से आपका क्या तात्पर्य है?(U.P.B.T.E. 2003)

 उत्तर- उत्पादन – “किसी पदार्थ को रूक्ष अवस्था से परिष्कृत अवस्था में परिवर्तित करने की तकनीकियों के अन्तर्गत होने वाली संक्रियाओं को ही उत्पादन कहते हैं।” उत्पादन प्रौद्योगिकी एक ऐसा विषय है जिसके अन्तर्गत मुख्यतः विभिन्न विनिर्माण प्रक्रमों (Manufacturing processes) तथा किसी प्रक्रम विशेष में प्रयुक्त होने वाली विभिन्न संक्रियाओं के क्रियान्वयन हेतु वांछित मशीनों, उपकरणों एवं औजारो के सम्बन्ध में यथार्थ जानकारी प्राप्त की जाती है। 

          किसी भी उत्पादन कार्य के अन्तर्गत मशीनों तथा उत्पादन प्रक्रमों को अन्योयाश्रित सम्बन्ध होता है। किसी भी उत्पाद के लिये सर्वोत्त्तम मशीन या उत्पादन प्रक्रम के उचित चयन हेतु यह अत्यावश्यक है कि उत्पादन अभियन्ता को हर सम्भव उत्पादन विधियों का पर्याप्त ज्ञान हो। एक कार्य को करने की बहुत सी विधियाँ हो सकती हैं, किन्तु उन सभी विधियों में जो सर्वाधिक मितव्ययी व लाभप्रद हो उसे ही अपनाया जाना चाहिये। ताकि श्रम (Labour), समय (Time) और उत्पादन लागत को यथासम्भव न्यूनतम किया जा सके।

प्रश्न 4- ब्रोचन संक्रिया से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में इसके लाभ तथा परिसीमाओं का वर्णन कीजिये।(U.P.B.T.E. 2002) 

उत्तर- ब्रोचन संक्रिया – ब्रोचन एक धातु कर्तन प्रक्रम है जिसमें आन्तरिक तथा बाह्य सतहों का मशीनन बहुसंख्यक कर्तन कोरों वाले औजार से किया जाता है। जिसे ब्रोच कहते है।

ब्रोचन धातु कर्तन की एक ऐसी विशिष्ट मशीनन संक्रिया है, जो ब्रोचन मशीन पर की जाती है। तथा ब्रोचन मशीन में ब्रोच नामक बहु दाँतो वाले एक लम्बे कर्तक औजार का प्रयोग किया जाता है। ब्राच एक ऐसा विशिष्ट कर्तक औजार है जिसमें टेपरित दण्ड पर एक श्रृंखला में अनेक कर्तन दाँत होते हैं।

ब्रोचन संक्रिया के लाभ

1. ब्रोचन द्रुत क्रिया है। अन्य मशीनों की तुलना में इसकी उत्पादन दर अधिक है।

2. ब्रोचन क्रियाओं में अपेक्षाकृत कम दक्षता की आवश्यकता होती है।

3. ब्रोचन औजार तथा कार्य खण्ड को ब्रोचन मशीन पर सैट कर लेने के बाद मशीन पर क्रिया करना सरल हो जाता है।

4. ब्रोचन औजार को क्रिया के अन्तर्गत बार-बार ग्राइण्ड करने की आवश्यकता पड़ती है।

5, ब्रोचन औजार के प्रत्येक दाँते को बहुत कम धातु काटनी पड़ती है इसलिये ब्रोच अधिक गर्म नहीं होते।

6. ब्रोच के परिष्कृत दाँते रूक्ष दाँतों की अपेक्षा कम कटाई करते हैं, इसलिए इनकी धार अधिक समय तक बनी रहती है।

8. ब्रोचन के एक ही स्ट्रोक में क्रिया पूर्ण हो जाती है। 19. ब्रोचन से सतह परिष्करण तथा यथार्थकता उच्च कोटि की प्राप्त होती है।

10. ब्रोचन क्रिया बाह्य तथा आन्तरिक दोनों प्रकार की सतहों पर दक्षतापूर्वक की जा सकती है।

11. कटाई तरल सरलता से ब्रोच दाँतों में पहुँच जाता है।

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परिसीमायें

1. ब्रोचन औजार का मूल्य अधिक होता है, दाँतों पर धार लगाने की लागत कम होती है।

2. एक ब्रोच केवल एक ही आकृति तथा साइज प्रदान करता है।

3. कार्य को पकड़ने हेतु फिक्स्चरों की आवश्यकता पडती है।

4. उत्पादन की कम मात्रा के लिये ब्रोचन क्रिया उपयुक्त नही होती।

5. ब्रोचन से धातु की मोटाई कम नहीं की जा सकती।

6. कमजोर व मृदु के कार्य खण्डों पर ब्रोचन क्रिया सफल नहीं होती।

7. ब्रोचन क्रिया से पूर्व धातु पर रूक्ष कटाई करनी पड़ती है। जैसे सतह बनाना, छिद्र काटना आदि।

ब्रोचन हेतु असम्भव परिसीमायें-

1. बन्द छिद्र के लिये यह क्रिया असम्भव है।

2. कार्य-खण्डों के कमजोर व पतले भागों पर ब्रोचन करना असम्भव होता है, क्योंकि ये ब्रोचन में उपजे बलों को सहन करने में सक्षम नहीं होते।

3. ब्रोचन में एक क्रिया ब्रोच के एक स्ट्रोक से पूर्ण होती है। दो या दो से अधिक क्रियाओं को एक स्ट्रोक मे पूर्ण नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 5- बहिर्वेधन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। एक छोटी नलिका का बहिर्वेधन आरेख की सहायता से दर्शाइये। (U.P.B.T.E. 2002)

 उत्तर- बहिर्वेधन (Extrusion) – एक बन्द बर्तन के अन्दर किसी तप्त धातु को बलपूर्वक डाई के छिद्र से गुजार कर वांछित आकार के उत्पाद निर्मित करने की क्रिया को बहिर्वेधन कहते हैं।

इस प्रक्रम के अन्तर्गत धातु के गर्म किये हुए स्लग या बिल्लेट (Heated slug or billet) को एक बन्द कक्ष के भीतर सम्पीड़ित करके डाई नामक एक छिद्र में से होकर उच्च दाब के साथ बाहर निकाला जाता है। इस छिद्र का आकार तैयार होने वाले अवयव के वांछित आकार जैसा ही रखा जाता है।

ट्यूब बहिर्वेधन– इस क्रिया में तप्त धातु बिल्लेट को धारक में रखकर सर्वप्रथम मैन्ड्रल द्वारा भेद दिया जाता है। मैण्ड्रल का अगला सिरा सम्पूर्ण विलेट तथा डाई छिद्र में एक निश्चित दूरी तक प्रवेश कर जाता है। फलस्वरूप डाई छिद्र तथा मैण्ड्रल के बीच छल्लेदार अन्तराल उत्पन्न हो जाता है।

रैम जब डमी ब्लाक (Dummy Block) सहित डाई की तरफ चलता है तो धातु बलपूर्वक टयूब का आकार ग्रहण कर लेती है। इस प्रकार निष्कासित टयूब का बाहरी व्यास डाई छिद्र के बराबर तथा आन्तरिक व्यास मैन्ड्रल के व्यास के बराबर प्राप्त हो जाता है।

अप्रत्यक्ष बहिर्वेधन (Indirect Extrusion)

अनुप्रयोग :

1. इस प्रक्रम का सही उपयोग अलोह धातुओं तथा इनकी मिश्र धातु की रचना करने में होता है।

2. बहिर्वेधन प्रक्रम में अनेक किस्म की आकृतियाँ निर्मित की जा सकती है।

3. बहिर्वेधन छड़ें 5 से 200 mm व्यास तथा टयूब 800 mm तक भीतरी व्यास व 1.5 से 8 mm से मोटाई तक के व्यास वाली हो सकती हैं।

प्रश्न 6- फोर्जन (Forging) क्या है? अनुप्रयोग क्या है? 

उत्तर- फोर्जन (Forging)- फोर्जन एक ऐसी धातु प्ररूपण प्रक्रम है जिसके द्वारा फोर्जन योग्य धातुओं को उनके गलनांक से कुछ कम तापमान पर अर्थात सुघटय अवस्था तक गर्म करने के उपरान्त उन पर बाह्य दाब प्रयोग करके धात्विक आयतन में कमी किये बिना उनकी आकृति व आकार पूर्व निर्धारित विमाओं के अनुसार तैयार करने हेतु उन्हें वांछित आकृति व आकार में गढ़ा जाता है।

यह प्रक्रम शक्ति घन, फोर्जन प्रेस, तथा स्थूलवर्धन मशीन से अथवा विभिन्न औजारों द्वारा हाथ से की जा सकती है। सामान्यतः पिटवाँ लोहा, मृदु इस्पात, औजार इस्पात, ताँबा, एलुमिनियम, मैग्नीशियम एवं इनकी मिश्र धातुओ पर फोर्जन क्रियाये की जा सकती है।

अनुप्रयोग- फोर्जन प्रक्रम का प्रयोग ऐसे अनेक घरेलू, कृषि यन्त्रों व औजारो, अस्त्र-शस्त्र तथा इन्जीनियरी उपयोग में आने वाले विभिन्न पुों का निर्मित करने में होता है। जिनमें उच्च सामर्थ्य तथा झटकों व कम्पन्नों को सहने योग्य पर्याप्त गुणों की आवश्यकता हो जो मुख्य अग्राकिंत हैं

1. घरेलू सामान।

2. कृषि में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न उपकरण व औजार। 

3. चोबे, डिबरियाँ, चाभियाँ नींव काब्ले, क्रेन के हुक इत्यादि।

4. रिवेटन प्रक्रम द्वारा टैंकों, बॉयलरों व भट्ठियों का निर्माण।

5. पत्तीदार स्प्रिटं व कुण्डलिनी स्पिगें

6. गरारी ब्लैंक, शाफ्टे, धुरे, लीवर, संयोजक दण्ड, पिस्टन दण्ड, कैम तथा पाने इत्यादि।

प्रश्न 7- धातु परिष्करण प्रक्रम क्या होता है? समझाइये। 

उत्तर- धातु परिष्करण प्रक्रमों का मूल उद्देश्य धातु के पृष्ठों का परिष्करण करना होता है। इन प्रक्रमों द्वारा कार्यखण्ड की विमाओं में कोई प्रभावी परिवर्तन परिलक्षित नहीं होता है।

धातु परिष्करण प्रक्रमों में मुख्यत लेहन, (Lapping), होनकरण (Honing), अति परिष्करण (Super-finishing), पॉलिशीकरण (Polishing), बफकरण (Buffing) तथा टम्बलन (Tumbling) इत्यादि क्रियाएँ आती हैं

लेहन एक ऐसी पृष्ठ परिष्करण संक्रिया है, जिसका प्रयोग कार्यखण्ड की रूक्षता (Roughness), तरंगता (Waviness) तथा अन्य सूक्ष्म अनियमितताओं को समाप्त या कम करने तथा पृष्ठ परिष्कृति को उन्नत करने के लिये किया जाता है। होनकरण भी सूक्ष्म परिष्करण संक्रिया है, जिनका मुख्यतः प्रयोग धातु पृथक्करण, आकार जनन तथा कोई भी अभीष्ट पृष्ठ परिष्कृति उत्पादित करने हेतु किया जाता है।

अति-परिष्कृति प्राप्त करने तथा अपघर्षण (Grinding) द्वारा शेष छोटे बकवाद चिह्नों, प्रभकरण सर्पिलों (Feed Spirals) इत्यादि कमियों को पृथक्करत करने के लिये किया जाता है। पॉलिशीकरण एक ऐसी पृष्ठ परिष्करण संक्रिया है जिसे कार्य पृष्ठ पर से खरोंचें (Scratche), औजार चिह्नों (Tool marks) तथा इसी तरह की अन्य अनियमितताएँ, जो कि मशीनन, ढलाई तथा फोर्जन इत्यादि

पूर्व संक्रियाओं के दौरान उत्पन्न होती है, हटाने के लिये प्रयोग किया जाता है। यह संक्रियता सामान्यतः अपघर्षन (Grinding) के बाद की जाती है। जिसका मूल उद्देश्य केवल पृष्ठ परिष्कृति को उन्नत कर उसे आकर्षण बनाना है और इसलिये इसका प्रयोग केवल तभी किया जाता है जबकि वैमायिक यथार्थता के अधिक सन्निकट नियन्त्रण की आवश्यकता न हो।

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