Piston kise khte hai
पिस्टन (Piston)
अन्तर्दहन-इंजन में पिस्टन के कार्य निम्नलिखित होते हैं
3.1 कार्य (Functions) तथा गुण (Characteristics)
- सिलिण्डर में उपजी रहन गैसों के बल को फ्रैंक-शाफ्ट तक पहुँचाना।
- दहन कक्ष में उच्च दाब वाली गैसों को बॅक-केस में जाने से रोकना अर्थात् गैसों के लिये सील बनाना।
- संयोजक दण्ड (connecting rod) को गाइड करना और उसके छोटे सिरे को सहारना।
उपरोक्त कार्यों को करने के अतिरिक्त पिस्टन में निम्नलिखित गुण भी होने चाहिये।
- क्रिया के अन्तर्गत इससे ध्वनि नहीं होनी चाहिये।
- यह सिलिण्डर की दीवारों से चिपकना (seize) नहीं चाहिये।
- यह संक्षारणरोधी होना चाहिये।
- यह न्यूनतम सम्भव लम्बाई का होना चाहिये जिससे इंजन का ओवरऑल साइज कम हो सके।
- यह भार में हल्का होना चाहिये, जिससे इसकी पश्चाग्र गति से उत्पन्न जड़त्व बल (inertia forces) न्यूनतम हो ।
- इसकी धातु में उच्च ऊष्मीय चालकता होनी चाहिये।
- इसका जीवनकाल अधिक होना चाहिये ।
3.2 पिस्टन की बनावट और धातु (Constructional Features and Materials of Piston)
पिस्टन की सामान्य बनावट चित्र 11.11 में दिखायी गयी है। पिस्टन के सबसे ऊपरी भाग को हैड या क्राउन (head or crown) कहते हैं । पिस्टन का हैड सामान्यतया चपटा होता है।
परन्तु आवश्यकतानुसार पिस्टन-हैड अन्य आकार के भी होते हैं उच्च शक्ति इंजनों में पिस्टन-हैड उन्नत-गुम्बद (raised dome) आकार का होता है, चित्र 11.12
(अ) के अनुसार इस प्रकार के पिस्टन सम्पीडन-अनुपात को बढ़ाने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। कुछ अन्य प्रकार के पिस्टनों के हैड नतोदर (तश्तरी आकार) होते हैं जोकि सिलिण्डर हैड और पिस्टन-हैड के बीच दहन-कक्ष के लिये समुचित स्थान उपलब्ध कराते हैं। चित्र 11.12
(ब) के अनुसार ऐसे पिस्टनों का प्रयोग अधिकतर डीजल इंजनों में किया जाता है जिनमें सम्पीडन अनुपात नियंत्रित करना आवश्यक है।
चित्र ।।.12 (स) में विक्षेपित पिस्टन (Deflected piston) दिखाया गया है जिसका उपयोग द्वि-स्ट्रोक इंजनों में किया जाता है।
पिस्टन के क्राउन से कुछ नीचे रिंग ग्रूवस (ring grooves) कटे होते हैं जिनमें पिस्टन-रिंग्स (piston rings) लगाये जाते हैं। यह खाँचे कम से कम तीन होते हैं। ऊपरी दो खाँचों में सम्पीडन-रिंग्स तथा तीसरे खाँचे में आयल-रिंग लगाये जाते हैं। आयल-रिंग वाले खाँचे में पिस्टन की परिधि पर आयल-ड्रेन होल्स (oil drain holes) बने होते हैं। दो खाँचों के बीच वाले भाग को लैंड्स (lands) कहते हैं। यह लैंड्स, रिंग्स को गैस दाव के विरुद्ध सहारते हैं। पिस्टन के मध्य भाग में पिस्टन पिन बॉस (piston pin boSS) होता है जो पिस्टन पिन को दो विपरीत सिरों पर सहारता है।
पिस्टन पिन बॉस और क्राउन के बीच सर्पोटिंग-वैब (supporting wcb) बने होते हैं। सर्पोटिंग-वैब पिस्टन के क्राउन से पिस्टन पिन बॉस तक दहन गैसों के विस्फोटन-बल (force of explosion) को अन्तरित करते हैं। इस प्रकार रिंग-ग्रूवस (ring grooves) को दहन गैसों के भारी बल से सुरक्षित रखते हैं जिससे कि रिंग ग्रूवस का विरूपण (deformation) न होने पाये। रिस के नीचे वाले भाग को पिस्टन स्कर्ट (piston skirt) कहते हैं। पिस्टन पिन बॉस, पिस्टन के भीतरी भाग में होते हैं और पिस्टन-पिन को सहारते हैं। स्कर्ट वाला भाग सिलिण्डर में क्लोज-फिटिंग (close fitting) प्रदान करता है परन्तु सिलिण्डर-दीवार और स्कर्ट के बीच स्नेहन-तेल की ( परत होने से पिस्टन की स्मूथ-रनिंग बनी रहती ।
पिस्टन की धातु ढलवाँ लोहा तथा एल्यूमीनियम ऐलॉय की होती है। एक समय तक ढलवाँ लोहे के बने पिस्टन प्रचलित थे। प्रौद्योगिकी के विकास होने पर एल्यूमीनियम ऐलॉय के पिस्टन अधिक प्रयोग किये जाने लगे क्योंकि इनके दो विशिष्ट लाभ हैं (अ) यह ढलवाँ लोहे से तीन गुणा हल्के होते हैं । (ब) इनकी ऊष्मीय दक्षता अधिक होती है। एल्यूमीनियम ऐलॉय के पिस्टन के कुछ अलाभ भी हैं। इनकी सामर्थ्य ढलवाँ लोहे के बराबर नहीं है, इसलिये सैक्शनस की मोटाई अधिक रखनी पड़ती है। एल्यूमीनियम क्योंकि नरम धातु है इसलिये स्नेहन तेल के साथ मिलकर धातुकण पिस्टन की सतह पर चिपक जाते हैं जोकि सिलिण्डर दीवार के साथ ग्राईंडिंग या अपघर्षण क्रिया करते हैं, जिससे सिलिण्डर दीवारों की टूट-फूट अधिक होती है।
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