Parts of I.C. Engine and their functions ppt -Main Parts of I.C. Engine
I.C. इंजन के प्रमुख भाग (Main Parts of I.C. Engine)
I.C. इंजन के प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं:-
- सिलिण्डर-ब्लॉक तथा क्रैक-केस (Cylinder block and crank case)
- सिलिण्डर हैड (Cylinder head)
- पिस्टन (Piston)
- पिस्टन रिंग्स (Piston rings)
- पिस्टन पिन (Piston pin)
- संयोजक दण्ड (Connecting rod)
- क्रैक शाफ्ट (Cranks shaft)
- कैम शाफ्ट (Cam shaft)
- वाल्व तथा वाल्व-यन्त्रावली (Valve and valve mechanism)
- फ्लाई-व्हील (Fly wheel)
- साइलेन्सर या मफ्लर (Silencer or Muffler)
- वायु शोधक (Air-cleaners)
Table of Contents
उपरोक्त का संक्षिप्त विवरण आगे दिया गया है ।
सिलिण्डर-ब्लॉक तथा क्रैक-केस (Cylinder block and crank-case)
इंजन का मुख्य भाग होता है जो पश्चाग्र-गति से चलने वाले पार्टस को सहारता है और उनके लिये स्थान प्रस्तुत करता है। सिलिण्डर-ब्लॉक के ऊपर सिलिण्डर-हेड (cylinder head) और इसके नीचे क्रैक-केस (crank case) या सम्प (sump) लगाये जाते हैं। इसकी रचना एकल-ढलाई (single casting) के रूप में होती है जिसमें परिशुद्ध साइज के चिकनी सतह वाले सिलिण्डर बने होते हैं। यह सिलिण्डर-ब्लॉक सामान्तया धूसर-ढलवाँ लोहे (grey cast iron) के बने होते हैं परन्तु कुछ परिस्थितियों में हल्की रचना के लिये इन्हें ऐलाय-एल्यूमीनियम धातु का भी बनाया जाता है।
सिलिण्डर-ब्लॉक बहुधा जल-शीतलन या वायु-शीतलन तन्त्र द्वारा ठण्डे किये जाते हैं। जल-शीतलन की दशा में सिलिण्डर-ब्लॉक में जल-परिसंचरण के लिये आवश्यक मार्ग ढलाई में ही निर्मित होते हैं । वायु-शीतलन तन्त्र में इन्जन-ब्लॉक के बाहर अनेक प्रक्षेप (projection) ढले होते हैं जिन्हें फिन्स (fins) कहते हैं। एकल-सिलिण्डर चल-इन्जनों में समान्यतया वायु-शीतलन तन्त्र ही प्रयोग किया जाता है। सिलिण्डर-ब्लॉक में क्रैक-शाफ्ट तथा कैम-शाफ्ट लगाने के लिये आवश्यक प्रबन्ध होते हैं।
बहु सिलिण्डर इन्जनों में एक सिलिण्डर ब्लॉक में ही आवश्यकतानुसार एक से अधिक सिलिण्डर होते हैं। परन्तु इस दशा में कोई सिलिण्डर घिस या टूट जाता है तो सम्पूर्ण सिलिण्डर-ब्लॉक ही बदलना पड़ता है। इस कठिनाई से बचने के लिये सिलिण्डर-स्लीव या लाइनर (cylinder-sleeve or liner) को प्रत्येक सिलिण्डर बोर में लगाते हैं। स्लीव या लाइनर को घिसने के पश्चात् सरलतापूर्वक बदला जा सकता है।
चित्र 11.10 के अनुसार सिलिण्डर-ब्लॉक के निचले भाग में क्रैक-केस एक ढले हुए अभिन्न भाग के रूप में होता है। क्रैक-केस एक बॉक्स आकार में होता है जिसका बॉटम नहीं होता। क्रैक-केस के बॉटन पर इसकी दीवारें फ्लैंज (flanged) होती हैं जो ऑयल सम्प (Oil sump) को क्रैक-केस के साथ जोड़ने के लिए मशीनित सतह प्रदान करती है । क्रैक-केस में फ्रैंक-शाफ्ट को बेयरिंगों पर सहारा जाता है। जिन्हें मेन-बियरिंग कहते हैं ।
सिलिण्डर-ब्लॉक के शीर्ष भाग पर सिलिण्डर-हैड लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य पार्टस जैसे टाइमिंग गियर,वाटर पम्प, ईग्नीशन-डिस्ट्रीब्यूटर, फ्यूल-पम्प, फ्लाई-व्हील आदि भी सिलिण्डर-ब्लॉक के साथ जुड़े होते हैं। इसके अन्दर कैम शॉफ्ट भी लगी होती है। कैम शाफ्ट सामान्यतया क्रैक-शाफ्ट के समानान्तर फिट करी जाती है।सिलिण्डर-ब्लॉक की धातु सामान्यतया धूसर ढलंवा लोहा (Grey cast iron) और एल्यूमीनियम ऐलॉय होते हैं। धूसर ढलवां लोहा सिलिण्डर-ब्लॉक बनाने की उपयुक्त धातु है क्योंकि यह घिसाव (wear) और संक्षारण (corrosion) प्रतिरोधी है ।
धूसर ढलवां लोहा की रचना में 3.5% कार्बन, 2.5% सिलिकॉन और 0.65% मैग्नीज (manganese) होता है। कार्बन से इस धातु में स्नेहन (lubrication) के गुण आते हैं, सिलिकॉन से घिसाव रोधकता बढ़ती है और मैगनीज से सामर्थ्य व कठोरता बढ़ती है।सिलिण्डर-ब्लॉक के लिये जो एल्यूमीनियम ऐलॉय प्रयोग किया जाता है उसमें 11% सलिकॉन,0.5% मैंग्नीज और 0.4% मैग्नीशियम मिला होता है । सिलिकॉन धातु की सामर्थ्य और घिसाव रोधकता को बढ़ाता है और फैलाव (expansion) को रोकता है। मैग्नीज और मैग्नीशियम एल्यूमिनियम की सामर्थ्य को सुधारते हैं।
# सिलिण्डर हैड (Cylinder Head)
सिलिण्डर हैड को सिलिण्डर-ब्लॉक के शीर्ष पर स्टडों (studs) के सहारे जोड़ा जाता है। सिलिण्डर हैड और सिलिण्डर-ब्लॉक के बीच क्षरणरोधी जोड़ बनाने के लिये उनके जुड़ने वाली चपटी सतहों पर गास्केट (gaskets) लगाये जाते हैं। सिलिण्डर हैड इंजन-सिलिण्डरों पर दहन-कक्ष के लिये स्थान बनाया जाता है इस पर स्पार्क-प्लग या इन्जेक्टर लगाने के लिये छिद्र बने होते हैं तथा शीतलन-जल के परिसंचरण के लिये वाटर- जैकेट्स बने होते हैं। इसमें वाल्व-संचालन यंत्रावली लगाने के लिये भी स्थान होता है। सिलिण्डर हैड की धातुयें सामान्यतया ऐलॉय ढलवां लोहा या एल्यूमीनियम होती हैं। ऐलॉय ढलवां लोहा जिसमें 3.5% कार्बन, 2.5% सिलिकॉन और 0.650, मैग्नीज अवयव होते हैं, सिलिण्डर हैड के लिये प्रयोग किया जाता है। एल्यूमीनियम ऐलॉय एक वैकल्पिक धातु है जिसका उपयोग सिलिण्डर-हैड बनाने में किया जाता है, क्योंकि यह ढलवां लोहे की अपेक्षा हल्की होती है।
इसकी ऊष्मीय चालकता भी ढलवां लोहे से अधिक होती है इसलिये अधिक सम्पीडन अनुपात के लिये एल्यूमीनियम ऐलॉय के बने सिलिण्डर हैड प्रयोग किये जा सकते हैं। इस ऐलॉय में 11% सिलिकॉन, 0.5% मैग्नीज तथा (0.4% मैग्नीशियम एल्यूमीनियम ऐलॉय के सिलिण्डर हैड, ढलवा लोहे के बने सिलिण्डर-ब्लॉक पर भी सफलतापूर्वक प्रयोग किये जा सकते हैं।
# पिस्टन पिन (Piston pin)
पिस्टन पिन I.C. इंजन के पिस्टन और संयोजक दण्ड को परस्पर जोड़ता है। इसके अन्य नाम हैं-गजन पिन (gudgcoon pin) या रिस्ट पिन (wrist pin) इसमें हल्कापन रखने के लिये इसे नलिकाकार (tabular) रूप में बनाया जाता है। पिस्टन पिन को पिस्टन को दोनों विपरीत बॉस और संयोजक-दण्ड के छोटे सिरे पर बने छिद्रों से गुजार कर जोड़ तैयार किया जाता है। यह पिन निम्न कार्बन इस्पात (low carbon stccl) का बना होता है। इसकी सतह को केस हार्डनिंग विधि से कठोर बनाया है
संयोजक दण्ड (Connecting rod)
संयोजक दण्ड का कार्य पिस्टन की पश्चाग्र गति को बॅक-शाफ्ट की घूर्णी गति में बदलना होता है । एक विशेष संयोजक दण्ड चित्र 11.15 में दिखायी गयी है। संयोजक दण्ड की अनुप्रस्थ काट (cross-section) सामान्यतया I-scction की होती है। इस प्रकार की काट से अधिकतम दृढ़ता (rigidity) प्राप्त हाती है और संयोजक-दण्ड का भार भी कम हो जाता है। संयोजक दण्ड का छोटा-सिरा (small cnd) पिस्टन के साथ जुड़ता है और बड़ा-सिरा (big cnd) फ्रैंक शाफ्ट पर फ्रैंक-पिन से जुड़ता है।
छोटे-सिरे का आकार सौलिड आई (solid cyc) या स्पलिट आई (split eye) के समान होता है जोकि पिस्टन-पिन को सहारता है। बड़ा सिरा हमेशा दो भागों में होता है। इस सिरे को बोल्टों द्वारा फ्रैंक-पिन पर पकड़ा जाता है संयोजक-दण्ड के बड़े सिरे से छोटे सिरे तक एक बारीक छिद्र ड्रिल करके बना होता है। जिससे होकर स्नेहक तेल, पेंट से पिस्टन और पिस्टन-पिन तक पहुँचता है और उनका स्नेहन करता है
संयोजक-दण्ड सामान्यतया स्टील की बनी होती है और ड्राप-फोर्जिंग विधि से निर्मित की जाती हैं। संयोजक-दण्ड का निर्माण प्रौद्योगिकी विकास के साथ-साथ अब ढलाई द्वारा भी होने लगा है। यह संयोजक दण्ड मृदु ढलवाँ लोहा (malleable cast iron) या गोलाकार ग्रैफाइट ढलवाँ लोहा (spheroidal graphite cast iron) से निर्मित होते हैं। ढले हुए संयोजक दण्ड लागत में सस्ते होते हैं। इनकी सामर्थ्य कस होने कारण, इनका प्रयोग छोटे और मध्यम साइज के पैट्रोल इंजनों के लिये किया जाता है ।
फ्लाई व्हील (Fly wheel)
फ्लाई व्हील ढलवाँ लोहे का बना एक पहिया होता है। इसका उपयोग अन्तर्दहन इन्जनों में स्पीड के उतार-चढ़ाव (fluctuation) को सीमित करने के लिए होता है ! चित्र 11.22 के अनुसार इसकी परिधि पर एक रिंग-गियर (ring gear) चढ़ा होता है। रिंग-गियर के साथ एक डी. सी. मोटर की पिनियन मैश (mesh) करती है। सेल्फ स्टार्ट ऑटोमोटिव इन्जन में डी० सी० मोटर की पिनियन रिंग-गियर को घुमाती है जिसे क्रैकिंग कहते हैं। इन्जन के स्टार्ट होने के बाद पिनियन जो रिंग-गियर से मैश करती है, वापिस लौट जाती है। रिंग-गियर का पृष्ठ-भाग क्लच के लिये चालक सदस्य का कार्य करता है।
साइलेन्सर या मफलर (Silcncer या Mufflers)
इन्जन के निकास पाइप में इन्जन की निकास गैंसों की आवाज कम करने के लिये साइलेंसर का प्रयोग किया जाता है। इसमें निकास गैसों के रास्ते को घुमाव-फिराव एवं रुकावटें देकर गैंसों की ध्वनि को मन्द कर दिया जाता है । यह कई प्रकार के होते हैं । एब्जार्बर टाइप रिवर्स फ्लो-मफलर को चित्र 11.23 में दिखाया गया है।
इस प्रकार के साइलेन्सर में से जब निकास गैमें गुजरती हैं तो उन पर पिस्टन की चाल अनुसार घटते-बढ़ते दाव के कारण उत्पन्न ध्वनि को माइलेन्सर के छिद्रित पाइप के चारों ओर फाइबर ग्लास के बने ध्वनि-शोषक कवच द्वारा मन्द कर दिया जाता है।
इसके अतिरिक्त बैफल मफलर (Bafle Muffler) भी अधिकांश इन्जनों में प्रयोग किये जाते हैं। बैफल प्लेटें गैसों की गति को धीमा करती है और गैस को प्रसारित करके अवमन्दक का कार्य करती हैं, जैसा कि चित्र 11.24 में दिखाया गया है।
साइलेन्सर के पाइप में मृदु-इस्पात धातु की प्लेटों (M.S. Sheet) को वैल्ड करके इस प्रकार लगाया जाता है कि निकास गैसों के बहाव में गतिरोध उत्पन्न हो जाये तथा गैसों का बैफल प्लेटों से गुजरने पर विस्तार भी हो जिससे उनकी आवाज कम हो जाती है। इस प्रकार के साइलेन्सरों में इन्जन की लगभग 2% अश्व-शक्ति की हानि हो जाती है।
वायु-शोधक (Air-cleaners)
इन्जन सिलिण्डर तथा कारवोरेटर में धूल-रहित वायु प्रवेश करने के लिये पैट्रोल या डीजल इन्जन के वायु प्रवेश पाइप (inmet manifold) में वायु-शोधक लगाना आवश्यक है। वायु शोधक प्रवेश करने वाली वायु की आवाज भी कम करता है।
वायु-शोधक दो प्रकार के होते हैं:-
(i) शुष्क वायु शोधक (Dry air cleaner) — यह अधिकतर स्कूटर तथा मोटर साइकिलों में प्रयोग किये जाते हैं। इसमें शोधक तत्व (filter element) छिद्रित कागज (porous paper) का बना होता है जिसको चुन्नतदार (pleat) करके तार या धातु की जाली के बीच में लगाकर ऊपर नीचे कवर प्लेटों को नट तथा सेन्ट्रल बोल्ट से कस दिया जाता है। वायु प्रवेश पाइप की चौड़ी कक्ष में इसको फिट कर देते हैं। वायु, कागज छन्नक से होकर प्रवेश पाइप में जाती हैं। इसको चित्र 11.25 में दिखाया जाता है।
(ii) आयल बाथ टाइप वायु-शोधक (Oil bath type air cleancr) – इस प्रकार के वायु-शोधक कार, जीप तथा बस व ट्रक इन्जनों पर लगाये जाते हैं। इसकी हाउसिंग में तेल भरा रहता है। प्रवेश करने वाली वायु को पहले तेल की ऊपरी सतह से गुजरना पड़ता है, जिससे वायु में मिली धूल का बड़ा भाग तेल में ही रह जाता है । इसके बाद वायु ताँबे के तारों की बनी छन्नी (filter element) से गुजरती जाती है जहाँ वह शेष धूल व तेल के बड़े कण छोड़ देती है। इसके बाद यह शोधित वायु छन्नक के बीच में लगे पाइप से कार्बोटर या डीजल इन्जनों में सीधे प्रवेश पाइप में चली जाती है। यह वायु तेल से संतृप्त(saturated) होती है और सिलिण्डर के ऊपरी भाग में स्नेहक का कार्य भी करती है। देखिये चित्र 11.261
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