Single Phase Transformer (Construction) | Structure of Single Phase Transformer | Working Principle of Transformers
Terminology meaning and examples | Prat – 01
सिंगल फेज़ ट्रांसफॉर्मर की संरचना (Structure of Single Phase Transformer)
वह ट्रांसफॉर्मर, जिसकी प्राइमरी साइड में सिंगल फेज़ सप्लाइ दी जाती है और सेकण्डरि साइड से सिंगल फेज़ स्टेप-अप अथवा स्टेप-डाऊन सप्लाइ प्राप्त की जाती है, सिंगल फेज़ ट्रांसफॉर्मर (Single Phase Transformer) कहलाता है।
सिंगल फेज़ ट्रांसफॉर्मर (Single Phase Transformer ) के संरचनात्मक अंगों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है।
- चुम्बकीय परिपथ (magnetic circuit)
- वैद्युत परिपथ (electrical circuit)
- विद्युतरोधन (insulation or dielectric)
- धारक या पात्र अथवा टंकी (container or tank)
- अन्य सहायक अंग (other accessories)
चुम्बकीय परिपथ (Magnetic circuit)
चुम्बकीय परिपथ का मुख्य कार्य, मॉग्नेटिक फ्लक्स को सुगम पथ प्रदान करना है। इसीलिए यह लोह चुम्बकीय पदार्थ का बना होता है। इसके प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं –
(i) कोर (core)
(ii) योक (yoke)
(iii) क्लैम्पिंग स्ट्रक्चर (clamping structure)
(i) क्रोड (Core)-चुम्बकीय परिपथ का यह प्रमुख अंग है।
क्रोड का तात्पर्य ट्रांसफॉर्मर के आन्तरिक अंग से है, जो सिलिकॉन स्टील पटलों (laminations) से बना होता है, ताकि इसमें भँवर-धारा हानियाँ कम हों। इन पटलों (stempings) की मोटाई 0.35 mm से लेकर 0.5 mm तक होती है। इन पटलों (stempin gs) की मोटाई 0.35 mm से लेकर 0.5 mm तक होती है। इन पटलों की सतह पर विद्युतरोधी वार्निश चढ़ी (coated) होती है। कभी-कभी वार्निश के स्थान पर पटलों की प्रत्येक परत के बीच में टिस्सू पेपर (tissue paper) का उपयोग भी होता है, ताकि पटलें आपस में लघुपथित होकर, क्रोड में भँवर-धारा हानियों को न बढ़ा सकें।
छोटे ट्रांसफॉर्मर के क्रोड की लिम्ब का अनुप्रस्थ काट चौकोर अर्थात् वर्गाकार (square) होता है; परन्तु बड़े ट्रांसफॉर्मर के क्रोड की लिम्ब का अनुप्रस्थ काट वृत्ताकार (circular) होता है, जैसा कि चित्र 12.4 में प्रदर्शित किया गया है। वर्गाकार अनुप्रस्थ काट वाले लिम्ब की अपेक्षा, वृत्ताकार अनुप्रस्थ काट वाले लिम्ब पर वाइंडिंग में पदार्थ (Cu/Al/insulation) कम लगता है और कुण्डली के वर्तों पर तनाव एकसमान रहता है।
विभिन्न प्रकार के ट्रांसफॉर्मरों में प्रयुक्त आन्तरिक अंग मूलरूप से निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं
(a)- क्रोड प्ररूपी आन्तरिक अंग (Core type internal part)
(b)- कोश प्ररूपी आन्तरिक अंग (Shell type internal part)
(c)- बेरी प्ररूपी आन्तरिक अंग (Berry type internal )
(a) क्रोड प्ररूपी आन्तरिक अंग के लिए L अथवा U तथा I प्रकार के पटलों (stempings) का उपयोग होता है, जिन्हें चित्र 12.5 (b) तथा (c) में प्रदर्शित किया गया है। क्रोडप्ररूपी आन्तरिक अंग वाले ट्रांसफॉर्मर में कुण्डली कुण्डलनों (coil windings) को दोनों पक्ष स्तम्भों (side limbs) पर स्थापित किया जाता है,
जैसा कि चित्र 12.6
(a) से स्पष्ट है।
(b) कोश प्ररूपी आन्तरिक अंग के लिए E तथा । अथवा T तथा U प्रकार के पटलों (stempings) का उपयोग होता है, जिन्हें चित्र 12-5 (a) तथा (d) में प्रदर्शित किया गया है। कोश प्ररूपी आंतरिक अंग वाले ट्रांसफॉर्मर में कुण्डली कुण्डलनों (coil windings) को मध्य लिम्ब (mid limb) पर स्थापित किया जाता है, जैसा कि चित्र 12-6 (b) से स्पष्ट है।
(c) बेरी प्ररूपी आन्तरिक अंग के लिए भी L अथवा U व I प्ररूपी पटलों (laminations) का उपयोग होता है, जिन्हें
चित्र 12.5 (b) तथा (c) में प्रदर्शित किया गया है। बेरी प्ररूपी आन्तरिक अंग वाले ट्रांसफॉर्मर में कुण्डली कुण्डलनों (coil windings) को केन्द्रीय लिम्ब (central limb) पर स्थापित किया जाता है इंस्यूलेटिंग वार्निश से लेपित (coated) सिलिकॉन स्टील से निर्मित E, I, L तथा U प्ररूपी पटलों (laminations) को अग्रलिखित दो विधियों द्वारा जोड़कर, समूचे क्रोड (complete core) का निर्माण किया जाता है
(i) सिरा जोड़ विधि (butt joint method)
(ii) इन्टरलीव जोड़ विधि (inter leave joint method)
बट जोइंट मेथड में पटलों के सिरों को एक-दूसरे से जोड़कर, विभिन्न प्रकार के क्रोडों (cores) का निर्माण किया जाता है, जबकि इन्टरलीव जोइंट मेथड में पटलों के सिरों को एक दूसरे में फंसाकर, विभिन्न प्रकार के क्रोडों का निर्माण किया जाता है।
(ii) योजक अर्थात् योक (Yoke) — ट्रांसफॉर्मर की कोर लिम्बों को सीधा ऊर्ध्वाधर रखने के लिए नीचे तथा ऊपर आलम्बों (supports) की आवश्यकता होती है, जिन्हें योक कहते हैं। आधार को आधार योजक (bottom yoke) अथवा निचला योजक (lower yoke) कहते हैं और शीर्षालम्ब (top support) को ऊपरी योजक (upper yoke) कहते हैं। यह अन्तिम अंत्यों (ends) पर लिम्बों से जुड़ा रहता है। यह मृदु लोहे का बना होता है और नट-बोल्टों से कसा रहता है। इसका प्रमुख कार्य, लिम्वों को कसकर सहारा देना तथा चुम्बकीय परिपथ को पूर्ण करना है।
(iii) शिकंजा ढाँचा अर्थात् क्लैम्पिंग स्ट्रक्चर (Clamping structure) — पटलियों या पत्तियों (laminations or strips) को स्थायी रूप से बाँधकर रखने के लिए क्लैम्पिंग स्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है। यह प्रायः कोर के जोड़ों तथा मोड़ों पर लगाया जाता है।
वैद्युत परिपथ (Electrical circuit)
वैद्युत परिपथ का प्रमुख कार्य, धारा को सुगम पथ प्रदान करना है। इसीलिए यह कॉपर अथवा ऐलुमिनियम की कुण्डलियों (coils) का बना होता है। इसे कुण्डली कुण्डलन (coil winding) कहते हैं। प्रति कला (phase) निम्नलिखित दो कुण्डली कुण्डलने होती हैं
(i) उच्च तनाव कुण्डली कुण्डलन (High tension coil winding) अर्थात् उच्च वोल्टता कुण्डली कुण्डलन (High voltage coil winding)
(ii) न्यून तनाव कुण्डली कुण्डलन (Low tension coil winding) अर्थात् न्यून वोल्टता कुण्डली कुण्डलन (Low voltage coil winding)
ट्रांसफॉर्मर की वाइंडिंग एक सरल कॉइल वाइंडिंग होती है, जिसे वेकेलाइज्ड कागज से निर्मित बेलनाकार ढाँचों (frame) पर कॉइल के रूप में तैयार किया जाता है। इन्हीं काइलों को कोर की लिम्ब में पिरोकर; ट्रांसफॉर्मर कोइल को विद्युतरोधी तार (insulated wire) अथवा विद्युतरोधी पत्ती (insulated strip) से बनाया जाता है। इसके लिए एनामेल लेपन (enamel coating) तथा संसेचित फीता (impregnated tape) प्ररूपी विद्युतरोधनों का उपयोग होता है, जो कॉइल वाइंडिंग पर स्पष्ट दिखाई देते हैं। इसके बाद भी कॉइल वाइंडिंग पर विद्युतरोधी वार्निश का लेप (coat) कर दिया जाता है, ताकि विद्युतरोधी फीता नमी (moisture) धारण न कर सके।
यद्यपि एच० टी० एवं एल० टी० वाइंडिंग को पृथक्-पृथक् कोरलिम्ब पर स्थापित किया जाता है; परन्तु फ्लक्स-लीकेज कम करने के लिए इन दोनों वाइंडिंगों को, क्रोड-अंगों (core limbs) पर साथ-साथ स्थापित करना नितान्त आवश्यक होता है। इसके लिए निम्नलिखित दो विधियाँ अपनायी जाती हैं
(i) संकेन्द्री कुण्डलन विधि (Concentric winding method)
(ii) अन्तर्निविष्ट कुण्डलन विधि (Sandwich winding method)
(i) संकेन्द्री कुण्डलन विधि को बेलनाकार कुण्डलन विधि (cylindrical winding method) भी कहते हैं। इस विधि के अन्तर्गत सर्वप्रथम एल० टी० वाइंडिंग को क्रोड-अंग पर स्थापित किया जाता है। इसके ऊपर एच० टी० वाइंडिंग को स्थापित किया जाता है । इन दोनों वाइंडिंगों के बीच लकड़ी के गुटकों (blocks) द्वारा एक बेलनाकार अन्तराल (cylindrical gap) की व्यवस्था की जाती है, जिससे विद्युतरोधी तेल परिभ्रमित (circulate) होकर, वाइंडिंग को शीतलन (cooling) प्रदान करता है, अर्थात् ठण्डा (cool) करता है। दोनों वाइंडिंगों के बीच स्थान (space) प्रदान करने वाले लकड़ी के गुटकों (blocks) को स्थानक (spacer) कहते हैं
(ii) अन्तर्निविष्ट कुण्डलन विधि के अन्तर्गत एच० टी० एवं एल० टी० वाइंडिंगों के कुण्डली-खण्डों (coil sections) को कोरलिम्ब पर पक्षबद्ध (side by side) क्रमबद्ध स्थापित किया जाता है इसमें प्रायः दो न्यून वोल्टता की कुण्डली-खण्डों के बाद, एक उच्च वोल्टता की कुण्डली-खण्ड के स्थापित करने की व्यवस्था का आयोजन रहता है।
एच० टी० वाइंडिंग की अभिकल्पना, उच्च वोल्टता तथा न्यून धारा के लिए की जाती है; इसलिए इसके लिए उच्च वोल्टता के अनुसार, ही अधिक वर्गों की संख्या तथा अधिक विद्युतरोधन की आवश्यकता होती है। दूसरे इसके लिए न्यून धारा के अनुसार, ही पतले तार अथवा पतली पत्ती की आवश्यकता होती है, जिसका प्रतिरोध अधिक होता है। उच्च वोल्टता के कारण ही, एच० टी० वाइंडिंग को प्रायः लोह क्रोड से दूर और एल० टी० वाइंडिंग को लोह क्रोड के निकट रखा जाता है। इससे विद्युतरोधन की बचत होती है और आयतन भी घट जाता है। फलतः ट्रांसफॉर्मर का साइज लघु हो जाता है। यदि एच० टी० वाइंडिंग को लोह क्रोड के निकट रखा गया, तो क्रोड तथा कुण्डलन (core and winding) के बीच अधिक विद्युतरोधन (insulation) लगाना पड़ेगा। फलतः ट्रांसफॉर्मर का आयतन बढ़ जायेगा और अनुरक्षण में भी अधिक कठिनाई होगी; क्योंकि एच० टी० वाइंडिंग में ही प्रदोष की संभावनायें अधिक होती हैं।
इसके विपरीत एल० टी० वाइंडिंग को न्यून तथा उच्च धारा के लिए बनाया जाता है; इसलिए इसमें न्यून वोल्टता के अनुसार ही, कम वर्गों की संख्या तथा सामान्य विद्युतरोधन का उपयोग किया जाता है। दूसरे इसमें उच्च धारा के अनुसार ही, मोटे तार अथवा मोटी पत्ती का उपयोग होता है, जिसका प्रतिरोध कम होता है। एल० टी० वाइंडिंग को प्रायः लोह क्रोड के निकट स्थापित किया जाता है और क्रोड तथा कुण्डलन के मध्य सामान्य विद्युतरोधन प्रदान किया जाता है।
विद्युतरोधन अर्थात् इंस्यूलेशन (Insulation)
ट्रांसफॉर्मर में कुण्डली कुण्डलन (coil winding) लोह क्रोड से पृथक् (isolate) रखने, न्यून वोल्टता की कुण्डलन (1.t. winding) को उच्च वोल्टता की कुण्डलन (h.t. winding) से विलग (isolate) करने तथा कुण्डली कुण्डलन की परतों (layers) को एक-दूसरे से पृथक् करने के लिए कई प्रकार के कागजी विद्युतरोधनों का उपयोग किया जाता है; जैसे इम्प्रिगनेटिड पेपर, वार्निशयुक्त पेपर, लेदरोइड पेपर, प्रेसफान पेपर, प्रेस बोर्ड आदि। इसके अतिरिक्त विभागीय कुण्डलन (sectional coil winding) की चकतियों (discs) अर्थात् खण्डों को विलग करने के लिए विद्युतरोधी कार्ड-बोर्ड का उपयोग, स्थानक (spacer) की तरह होता है।
धारक अथवा पात्र (Container or Tank)
कोर तथा वाइंडिंग की एसेम्बली को माइल्ड स्टील या सोफ्ट आयरन की शीट से बने हुए टैंक में रखा जाता है, जिसमें विद्युतरोधी तेल (insulating oil) भरा रहता है। इस तेल को प्रायः ट्रांसफॉर्मर ऑइल कहते हैं। आयरन-टैंक का कार्य, ट्रांसफॉर्मर एसेम्बली (कोर एवं वाइंडिंग) को सुरक्षा प्रदान करना, तेल को धारण करना, तेल द्वारा शीतलन प्रदान करना, सहायक अंगों, युक्तियों, आरोपणों आदि को धारण करना है; इसलिए इसे धारक (container) भी कहते हैं।
छोटे ट्रांसफॉर्मर के टैंक का शीतलन पृष्ठ (cooling surface) प्रायः सादा एवं समतल (simple and plane) होता है; परन्तु बड़े ट्रांसफॉर्मर के टैंक का शीतलन पृष्ठ, शीतलन नलिकाओं (cooling ducts) से आरोपित (mounted) रहता है, जिन्हें ताप विकरकें (heat radiators) कहते हैं। ये विकरके प्रायः पाइप या ट्यूब अथवा पंख (pipe or fin) प्ररूपी होती हैं, जो ट्रांसफॉर्मर का शीतलन पृष्ठ बढ़ाकर, शीतलन प्रक्रम (cooling process) को अधिक प्रभावी (effective) बनाती हैं। इन्हें नलिकायें (ventilating duct) भी कहते हैं।
लघु ट्रांसफॉर्मर के टैंक में एल० टी० एवं एच० टी०, बुशिंग सिरों (terminals) के लिए छिद्र बने होते हैं, जबकि दीर्घ ट्रांसफॉर्मर के ढक्कन (cover) में छिद्र बने होते हैं। बड़े ट्रांसफॉर्मर के साथ ढक्कन भी बड़ा होता है, जिस पर बुशिंग-टर्मिनलों को सुगमता से आरोपित किया जा सकता है; परन्तु छोटे ट्रांसफॉर्मर के ढक्कन पर बुशिंग-टर्मिनलों को स्थापित करना सम्भव नहीं होता। इस प्रकार छोटे ट्रांसफॉर्मर का ढक्कन उठाकर, अनुरक्षण करना भी सुगम हो जाता है।
कंजरवेटर रहित छोटे ट्रांसफॉर्मर के ऑइल टैंक के पृष्ठ पर एक तेल सूचक (oil indicator) लगा होता है, जो टैंक में तेल की मात्रा को दर्शाता है; परन्तु बड़े ट्रांसफॉर्मर के कंजरवेटर में तेल सूचक लगा होता है, जो तेल के स्तर (level) को प्रदर्शित करता है।
Single Phase Transformer
1- पेंचकस (Screw Driver) किसे कहते है ?
- स्टैण्डर्ड स्क्रू ड्राइवर (Standard Screw Driver)
- हैवी ड्यूटी ड्राइवर (Heavy duty Screw Driver)
- फिलिप्स स्क्रू ड्राइवर (Philips Screw Driver)
- ऑफसेट स्क्रू ड्राइवर (Offset Screw Driver)
- रैचेट स्क्रू ड्राइवर (Ratchet Screw Driver)