what are the types of valve mechanism used in automobile in hindi

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इजन वाल्व तथा वाल्व यन्त्रावली (Valve and valve mechanism engine)

इन्जन वाल्व (Engine valve)

चतुर्घात अन्तर्दहन इन्जनों में सिलिण्डर के अन्दर वायु ईंधन मिश्रण का प्रवेश तथा सिलिण्डरों के बाहर एग्जास्ट गैसों का निकास वाल्वों के माध्यम से होता है।

इन्जन-वाल्वों को तीन मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।

  1. पॉपेट वाल्व (Poppet valve)
  2. स्लीव वाल्व (Sleeve valve)
  3. रोटरी वाल्व (Rotary valve)

उपरोक्त में पॉपेट वाल्व का प्रयोग ऑटोमोबाइल इन्जनों में विश्वव्यापी स्तर पर किया जाता है, जिसका विवरण यहाँ दिया गया है।

पॉपेट वाल्व (Poppet valves)

पॉपेट वाल्व का नाम इसकी क्रिया के अनुसार रखा गया है क्योंकि यह पॉपेट के समान ऊपर और नीचे की गति करता है। इसके आकार के अनुसार इसे मशरूम वाल्व (mushroom valve) भी कहते हैं। इसके मुख्य अंग हैड (head) और स्टैम (stem) होते हैं जैसाकि चित्र 11.19 में दिखाया गया है। इनकी रचना सरल होती है और यह सेल्फ-सैंटरिंग होते हैं। यह स्टेम की परिधि पर घूमने के लिये स्वतन्त्र होते हैं।

प्रयोग के आधार पर इन्लेट वाल्व

एग्जास्ट वाल्व की अपेक्षा व्यास में कुछ बड़े होते हैं क्योंकि सिलिण्डर में प्रवेश करने वाले वायु ईंधन मिश्रण की प्रवेश गति एग्जास्ट गैसों की अपेक्षा कम होती है और इन्हें अधिक स्थान की जरूरत होती है, जबकि एग्जास्ट गैंसे उच्च दाब पर होती हैं और अधिक गति से बाहर निकलती हैं। स्टैम का व्यास एग्जास्ट वाल्व के लिये इन्लेट-वाल्व के व्यास का 10 से 15 प्रतिशत अधिक होता है जिससे कि सिलिण्डर हैड में हीट-ट्रांसफर अधिक हो सके। वाल्व फेस कोण सामान्यतया 45° या 30° होता है । छोटा कोण अधिक वाल्व-ऑपनिंग प्रदान करता है। इस कारण कुछ इंजनों में इन्लेट वाल्व तो 30° या 45° कोण वाले होते हैं परन्तु एग्जास्ट वाल्व केवल 45° कोण वाले होते हैं।

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वाल्व को कुछ समय तक प्रयोग करने के पश्चात् इसे पुन: ग्राईंड करना होता है । इसके लिये वाल्व में मार्जिन (margin) प्रदान किया जाता है। वाल्व के स्टैम (stem) पर एक खाँचा बना होता है जिससे वाल्व-स्प्रिंग का एक सिरा लगाकर रोका जाता है। वाल्व-स्प्रिंग, वाल्व को अपनी सीट पर दबाकर रोके रखता है और सिलिण्डर के दहन-कक्ष को पूर्णतया अवरुद्ध करता हैं वाल्व की बन्द स्थिति में वाल्व-फेस सिलिण्डर-ब्लॉक पर बनी परिशुद्ध ग्राईंड की गयी सीट पर फिट बैठ जाता है।

इन्जन वाल्वों की धातुएँ (Materials of Engine valves)

इन्जन वाल्वों की धातुऐं सामान्यतया इन्लेट-वाल्व और एग्जास्ट वाल्व के लिये भिन्न होती हैं एग्जास्ट वाल्वों को अपेक्षाकृत अधिक तापमानों पर कार्य करना होता है इसलिये एग्जास्ट वाल्वों की धातु में निम्नलिखित मैकेनिकल गुण होने चाहिये

(i) उच्च तनन सामर्थ्य (tensile strength) तथा कठोरता ।

(ii) पर्याप्त फैटीग (fatigue) तथा क्रीप (creep) सामर्थ्य ।

(iii) संक्षारण रोधकता (corrosion resistance)

(iv) आक्सीकारक रोधकता (oxidation resistance)

(v) उच्च ऊष्मीय चालकता (high thermal conductivity)

इन्लेट – वाल्व के लिये सामान्यतया सिलिको-क्रोम (silico-chrome) इस्पात प्रयोग किया जाता है जिसमें 8% क्रोमियम, 3.5% सिलिकॉन, 0.5% मैग्नीज, 0.5% निकिल तथा 0.4% कार्बन की मात्रा होती है । इस इस्पात में मॉलिब्डिनम की कुछ मात्रा मिला देने से इसे एग्जास्ट वाल्व के लिये उपयुक्त बनाया जा सकता है। एग्जास्ट वाल्व के लिये कुछ नये पदार्थ भी आजकल प्रयोग में लाये जा रहे हैं जिन्हें ऑस्टिनिटिक स्टील (austinitic steel) तथा प्रोसिपिटेश्न हार्डनिंग स्टील (precipitation hardening stecl) कहते हैं।

एक विशिष्ट ऑस्टिनिटिक स्टील (21-12) में 21% क्रोमियम, 12% निकिल, 1% सिलिकॉन, 0.5% मैग्नीज और (0.25% कार्बन मिले होते हैं। एक अन्य विकसित प्रकार के ऑस्टिनिटिक स्टील (21-4 N) में 21% क्रोमियम, 0.4% नाइट्रोजन, 4% निकिल, 0.25% सिलिकॉन, 0.9% मैग्नीज तथा 0.5% कार्बन मिले होते हैं। एक विशेष प्रकार के प्रोसिपिटेश्न हार्डनिंग स्टील का संघटन निम्न प्रकार होता है

कार्बन ().4-0.5 प्रतिशत

क्रोमियम 23-24 प्रतिशत

निकिल 4.5-5.0 प्रतिशत

मॉलिब्डिनम 2.5-3.0 प्रतिशत

फॉस्फोरस (0.035 प्रतिशत (अधिकतम)

सल्फर0.035 प्रतिशत (अधिकतम)

हैवी ड्यूटी इन्जनों के लिये आजकल निमोनिक ऐलॉय (nimonic alloys) के बने वाल्व प्रयोग किये जाते हैं

हैवी ड्यूटी इन्जनों में प्रयोग हेतु ऐसे वाल्व भी विकसित किये गये हैं जो दो भागों में होते हैं। दोनों भागों को वेल्ड-जोड़ द्वारा जोड़कर वाल्व बनाये जाते हैं। इन वाल्वों के हैड (head) उच्च सामर्थ्य और संक्षारणरोधी व क्रीप प्रतिरोधी ऐलॉय से बनाये जाते हैं और इन्हें घिसावरोधी (wear resistant) ऐलॉय से बने स्टैम से वेल्डन द्वारा जोड़ दिया जाता है।

वाल्व यंत्रावली (Valve mechanism)

चतुर्घात चक्र पर आधारित अन्तर्दहन इन्जनों में दो प्रकार की वाल्व-यन्त्रावलियाँ प्रयोग की जाती हैं, अर्थात् साइड वाल्व (sidc valve) यन्त्रावली तथा शिरोपरि वाल्व (overhead valve) यन्त्रावली। चित्र 11.20 में –

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साइड वाल्व यन्त्रावली प्रदर्शित की गयी है । कैम-शाफ्ट (cam shaft) अपनी गति फ्रैंक शाफ्ट से गियर-ड्राइव या चेन-ड्राइव के माध्यम से प्राप्त करती है। कैम-शाफ्ट की गति फ्रैंक शाफ्ट की गति से आधी होती है। कैम-शाफ्ट पर लगी कैम (cam), वाल्व-स्टेम (valve-stem) को टैपेट (tappet) के माध्यम से ऊर्ध्व में ऊपर-नीचे चलाती है। वाल्व-स्टेम की यह चाल एक गाइड में होती है जिसे खराब होने पर बदला जा सकता है ।

वाल्व-स्प्रिंग (valve-spring) – वाल्व को उसकी सीट पर स्प्रिंग दाब के विरुद्ध रोके रखता है जिससे गैस-अवरुद्धता (gas tightness) सुनिश्चित होती है, साथ ही वाल्व को तेजी से आपनी सीट से उठने में यह स्प्रिंग सहायक होता है। इ-जन को जब चालू करते हैं तब इसकी ऊष्मा से वाल्व-स्टैम का प्रसार (expansion) होता है। इस प्रसार के लिए स्थान उपलब्ध कराने के लिये टैपेट और वाल्व-स्टैम के बीच कुछ गैप रखा जाता है

जैसाकि चित्र में दिखाया गया है। इस गैप को वाल्व-टैपेट-अवकाश (valve-tappet clearance) कहते हैं। वाल्व टैपेट अवकाश का मान सामान्यतया वाल्व- स्टैम की लम्बाई, इसके पदार्थ और इन्जन के क्रियाकारी तापमान पर निर्भर करता है । अवकाश का समायोजन समय-समय पर समंजन-पेंच (adjusting screw) को घुमाकर किया जा सकता है। अवकाश का मान निकास-वाल्व के लिए अपेक्षाकृत अधिक रखा जाता है क्योंकि यह वाल्व सिलिण्डर की निकास-गैसों से गरम हो जाता है जबकि प्रवेश-वाल्व, आने वाले वायु-ईधन चार्ज से ठण्डा बना रहता है।

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चित्र 11.21 में शिरोपरि वाल्व यन्त्रावली का सरल आरेख प्रदर्शित किया गया है इस यन्त्रावली में पुश-रॉड (push rod) और रॉकर-भुजा (rocker arm) वाल्व को स्प्रिंग दाब के विरुद्ध धकेलते हैं। रॉकर-भुजा की गति रॉकर-भुजा शाफ्ट (rocker arm shaft) के सहारे होती है। इस यन्त्रावली में अवकाश की स्थिति रॉकर-भुजा और वाल्व-स्टैम के बीच रखी जाती है जिसे समंजक-पेंच (adjustment screw) द्वारा समंजित किया जा सकता है। है कैम-शाफ्ट की गति उपयुक्त गियर-ट्रेन या चेन के माध्यम से बॅक-शाफ्ट से प्राप्त होती है

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