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Cooling of I C Engines
शीतलन की आवश्यकता (Need of cooling)
अन्तर्दहन-इंजनों में वायु-ईंधन के दहन से सिलिण्डर में जो ऊष्मा उपजती है उससे सिलिण्डर तथा इंजन के अन्य पार्टस ऊष्मा ग्रहण करके गरम होते रहते हैं, जिससे इनका तापमान बढ़ता रहता है। सिलिण्डर में यह तापमान अधिकतम 3000K तक विकसित हो सकता है।
इस उच्च तापमान के कारण इंजन पार्टस में टेढ़ापन (distortion), क्रैकिंग तथा मैल्टिंग आदि हो सकता है । इसके अतिरिक्त,उच्च तापमान से ईंधन का पूर्व-प्रज्वलन (pre-ignition) हो सकता है। (ऑटो-चक्र वाले इंजनों में) और स्नेहक तेल जल सकता है।
इन कारणों से यह आवश्यक हो जाता है कि इंजन के गर्म भाग को किसी प्रकार ठण्डा रखा जाये अर्थात् इंजन में उपजी ऊष्मा का कुछ भाग बाहर निकाला जाये। इस प्रयोजन के लिये शीतलन विधियों का प्रयोग किया जाता है।
शीतलन विधियाँ (Methods of cooling) -Cooling of I C Engines
ऑटोमोबाइल इंजनों में शीतलन की निम्न दो विधियाँ की जाती हैं:-
(1) वायु-शीतलन या प्रत्यक्ष-शीतलन (Air-cooling or direct cooling)
(2) जल-शीतलन या अप्रत्यक्ष-शीतलग (Water cooling or indirect-cooling)
वायु शीतलन (At-cooling)
इस विधि में सिलिण्डर की बाहरी सतह पर वायु के से इसे ठण्डा रखा जाता है। सतह के प्रभावी शीतलन के लिये सिलिण्डर के बाहर इसकी सतह का क्षेत्रफल कुछ धातु-उभारों (metal projections) या पखड़ों (fins) द्वारा बढ़ा दिया जाता है। यह विधि अधिकतर मोटर-साइकिल, स्कूटर, छोटे वायुयानों के इंजनों में प्रयोग की जाती है। इन वाहनों की गति के कारण तीव्र-वायु इंजन पर प्रवाहित होती है और इस प्रकार, वायु सिलिण्डर की, ऊष्मा अपने साथ ले जाती है। स्थिर प्रकार के छोटे इंजनों से वायु का प्रवाह पंखो (fans) द्वारा किया जाता है। सिलिण्डर के अन्दर वाले भागों द्वारा ऊष्मा का शोषण कम करने के लिये उसकी सतहों को साधारणतया पॉलिश कर दिया जाता है।
चित्र 11.62 में सिलिण्डर को ठण्डा करने के लिये पंखड़ों की व्यवस्था दिखाई गई है।
वायुशीतलन के लाभ तथा अलाभ
लाभ (Advantages)
(i) वायु शीतित इंजन हल्के होते हैं क्योंकि इनमें रेडियेटर, कूलिंग जैकेट और कूलेन्ट का प्रयोग नहीं किया जाता।
(ii) यह इंजन मौसम की विभिन्न परिस्थितियों में चलाये जा सकते हैं, जहाँ पानी भी जम जाता है।
(iii) जल की कमी वाले इलाकों में वायु शीतित इंजनों का प्रयोग लाभदायक है
(iv) अनुरक्षण सरल होता है, क्योंकि लीकेज की समस्या नहीं होती।
(v) वायु शीतित इंजन जल शीतिक इंजन की अपेक्षा जल्दी वार्म-अप (warm up) । होते हैं।
अलाभ (Disadvantage)
(i) वायु शीतित इंजन अधिक ध्वनि पैदा करते हैं।
(ii) वायु शौतिल स्टेशनरी इंजनों में वायु प्रवाह के लिये पंखों का प्रयोग किया जाता है जो इंजन की शक्ति से चलते हैं। अत: इंजन की कुछ शक्ति पंखों को चलाने में खर्च होती है।
(iii), वायु शीतलन विधि में ऊष्मा अन्तरण की अपेक्षाकृत कम होती है। इसलिये इस विधि का शीतलन प्रभाव जल शीतलन विधि से कम होता है।
(iv) सिलिण्डर में चारों ओर एक समान शीतलन प्रभाव नहीं होता क्योंकि सिलिण्डर का कुछ भाग ‘वायु के अधिक सम्पर्क में रहता है तथा शेष भाग कम सम्पर्क में रहता है।
जल शीतलन (Water Cooling)
जल शीतलन विधि में जल का परिसंचरण (circulation) इंजन-ब्लॉक में बने वाटर जैकेट्स (water-jacket) में होता है। वाटर-जैकेट्स इंजन ब्लॉक में सिलिण्डरों के बाहर, ऐसे खाली स्थान होते हैं जिनमें जल भरा रहता है । इंजन की रनिंग कंडीशन में जल का परिसंचरण होता है, फलस्वरूप सिलिण्डर दीवारों की ऊमा कूलिंग-कट में ट्रांसफर होती रहती है।
कूलिंग वाटर फिर गरम होकर रेडियेटर में जाता है जहाँ यह ऊष्मा खोकर पुनः इंजन ब्लॉक में आता है। रेडियेटेर से गुजरते हुये जाल की ऊष्मा वायु को ट्रांसफर होती है।
जल शीतलन की दो प्रमुख विधियों है।
(अ) थर्मोसाइफन विधि (Thermosyphon system)
(ब) पम्प परिसंचरण विधि (Pump circulation system)
थोसाइफन विधि (Thermosyphon system) Cooling of I.C. Engines
इस विधि का मूल सिद्धान्त चित्र 11.63 में प्रदर्शित किया गया है। टंकी A में भरे जल में ऊष्मा प्रवाह की जाती है। । गरम जल ऊपर उठता है और इसका ठण्डा जल टंकी-B से पाइप-P2 के माध्यम से आकर स्थान ग्रहण करता है। गरम जल पाइप-P1 से होकर टंकी-B में आ जाता है जहाँ पर यह वायु के सम्पर्क में ठण्डा होता है। रूप से टंकी-A का स्थान सिलिण्डर ब्लॉक में वाटर जेकेट्स (water jackets) ले लेती है और टंकी-B का स्थान रेडियेटर ले लेता है तथा जल ऊष्मा-वाहक का स्थान ले लेता है। वाटर-जैकेट्स में अधिक ठण्डा पानी उपलब्ध कराने के लिये रेडियेटर को सिलिण्डर से कुछ ऊँचाई पर रखा जाना चाहिये।
ऑटोमोबाइल इंजनों में इस विधि का व्यवाहारिक रूप चित्र 11.64 में दिखाया गया है। इस विधि में एक रेडियेटर, इंजन-ब्लॉक के साथ लचीली होज-पाइप से जुड़ा होता है। इंजन-ब्लॉक में कूलिंग-वाटर का परिसंचरण गरम और ठण्डे जल के घनत्व में अन्तर के कारण प्रभावी होता है। कूलिंग-वाटर इंजन सिलिण्डर की ऊष्मा अपने साथ ले जाता है और इंजन को ठण्डा रखता है। जल द्वारा इंजन ब्लॉक से ग्रहण की गयी ऊष्मा रेडियेटर के माध्यम से वायुमण्डल में चली जाती है। इस प्रकार, रेडियेटर से गुजरते हुए कलैक्टर-टैंक में पहुँचने तक जल ठण्डा हो जाता है। यही जल फिर इंजन में जाता है और वहाँ से ऊष्मा ग्रहण करता है। कुछ प्रकार के थर्मोसाइफन सिस्टम में रेडियेटर के पीछे एक पंखा लगाया जाता है जो रेडियेटर पर वायु के प्रवाह को बढ़ाता है। यह पंखा झैंक शाफ्ट पर लगी पुल्ली से बेल्ट द्वारा जुड़ा होता है।
यह सिस्टम सरल और निम्न लागत का होता है। इसका उपयोग पुराने इंजनों में किया जाता था। परन्तु आधुनिक इंजनों में इनका प्रयोग नहीं किया जाता। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
(i) शीतलन प्रक्रिया धीमी गति से होती है, इसलिये प्रभावी शीतलन के लिये इस सिस्टम में उच्च क्षमता की आवश्यकता होती है। तापमान तक
(ii) जल की प्रयोगिक मात्रा अधिक होती है इसलिये इंजन को आपरेटिंग आने में अधिक समय लगता है।
(iii) रेडियेटर का हैडर टैंक सिलिण्डर के वाटर जैकेट से ऊपर होना चाहिये, जोकि आधुनिक वाहनों की बॉडी बनावट में सम्भव नहीं हो पाता।
(iv) कूलिंग वाटर का लेवल एक न्यूनतम स्तर तक हमेशा बना रहना चाहिये, क्योंकि पानी का स्तर कम होने से यह सिस्टम फेल हो जायेगा।
पम्प या बलात परिसंचरण विधि (Pump or Forced circulation system)
थर्मो-साइफन विधि के समान ही इसका क्रिया-सिद्धान्त है परन्तु पानी का परिचालन है एक पम्प की सहायता से किया जाता है। इस विधि का उपयोग अधिकतर कारों, बसों और भारी ट्रकों आदि में किया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि इंजन की बन्द अवस्था में । या पम्प के खराब हो जाने पर थर्मोसाइफन के सिद्धान्त पर पानी का परिचालन बना रहता है। चित्र 11.64 में इस विधि की वास्तविक क्रिया प्रदर्शित की गयी है ।
इसके प्रमुख अवयव निम्नलिखित हैं: –
(i) रेडियेटर (Radiator)
(ii) पंखा (Fan)
(iii) वाटर-पम्प (Water-pump)
(iv) थर्मोस्टेट (Thermostate)
Cooling of I.C. Engines
इस प्रबन्ध में इंजन-ब्लॉक से गरम पानी का प्रवाह रेडियेटर की नलियों से होता हुआ रेडियेटर के निचले भाग तक होता है और फिर पुनः इन्जन-ब्लॉक में होता है। रेडियेटर में पानी नलियों के माध्यम से ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होता है जहाँ यह ठण्डा भी होता रहता है। रेडियेटर-नलियों को ठण्डा रखने के लिये एक पंखा नलियों के बीच रिक्त स्थानों से हवा खींचता रहता है । यह पंखा एक इम्पैलर-शाफ्ट (impeller-shaft) पर लगा होता है जोकि बैल्ट व है व पुल्ली व्यवस्था द्वारा बॅक-शाफ्ट से गति प्राप्त करता है । इम्पैलर रेडियेटर, के निचले भाग से ठण्डा-पानी खींचता है और उच्च गति पर इसका परिचालन इंजन में करता है।
इंजन को ठण्डी-अवस्था में स्टार्ट करने के लिये यह आवश्यक है कि इसका तापमान एक निश्चित सीमा से नीचे न गिरने दिया जाये। पानी का तापक्रम बनाये रखने के लिये उसके परिचालन-मार्ग में एक थर्मोस्टेट लगा दिया जाता है जो इंजन से रेडियेटर के बीच पीनी का प्रवाह तापक्रम की निश्चित सीमा से नीचे नहीं होने देता। सामान्यतया, थर्मोस्टेट 70°C से नीचे पानी का प्रवाह नहीं होने देता है।
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