ITI Fitter Theory Book 📘 in Hindi pdf

 ITI Fitter Theory Book 📘 in Hindi pdf

परिचय और सुरक्षा ( (Introduction and Safety)

आधुनिक युग मशीनों का युग है जिसमें तरह-तरह की मशीनों का विकसित रूप देखने को मिलता है। इसके अतिरिक्त घर-घर में लघु उद्योग भी कार्यरत् हैं । बड़े और छोटे दोनों प्रकार के उद्योगों में विभिन्न प्रकार के मशीनी पार्टी बनाये जाते हैं जिनको प्राय: कारीगर अपनी-अपनी मशनों पर बनाते हैं। ये कारीगर प्रायः लेथ, मिलिंग, शेपर, स्लॉटर, ग्रांइडर आदि मशीनों पर कार्य करते हैं। एक ही पार्टी पर प्राय: कई प्रकार की कार्य-क्रियायें करनी होती हैं

जिन्हें अलग-अलग मशीनों पर लगे हुए कारीगरों के द्वारा बनाया जाता है। इस प्रकार किसी असेम्बली या मशीन के जब सभी पार्ट्स बन जाते हैं तो उन्हें चैक करने के बाद दूसरे प्रकार की कारीगरों के पास भेज दिया जाता है जिन्हें ‘फिटर’ कहते हैं। वर्कशाप में कई प्रकार के फिटर होते हैं जैसे बेंच फिटर, असेम्बली फिटर, इरेक्शन फिटर आदि। इस अध्याय में हम केवल बेंच फिटर का अध्ययन करेंगे।

बेंच फिटर (Bench Fitter)

बेसिक कार्य-क्रियायें (Basic operations)

बेंच फिटर एक ऐसा कारीगर है जो कि लगभग 75% कार्य हैंड टूल्स की सहायता से बेंच पर और 25% कार्य मशीनों के द्वारा करता है। एक कुशल बेंच फिटर को फिटिंग के बारे में पूर्ण जानकारी होनी चाहिए जिससे फिटिंग वाले पार्टी को वह सही एलाउंस देकर फिट कर सके।

इसके अतिरिक्त उसे प्रयोग लाये जाने वाले हैंड टूल्स, सूक्ष्ममापी यंत्रों और मशीनों की पूर्ण जानकारी अर्थात इनके प्रकार, साइज, पार्ट्स, धातु, प्रयोग की विधि, मेन्टिनेंस आदि का ज्ञान होना चााहिए जिससे वह अपना कार्य कुशलतापूर्वक कर सकता है।

एक कुशल फिटर को कई बेसिक कार्य-क्रियाओं को करने के लिए निपुण होना चाहिए जैसे–मार्किंग, फाइलिंग, हेक्साइंग, चिपिंग, स्क्रेपिंग, ड्रिलिंग, रीमिंग, वेल्डिंग, रिवटिंग, सोल्डरिंग, ब्रेजिंग, सामान्य फोर्जिंग कार्य क्रियायें, सामान्य शीट मेटल कार्यक्रियायें, सामान्य लेथ कार्यक्रियायें इत्यादि।

1. लकड़ी के फ्रेम के साथ लकड़ी के टॉप वाला।

2. धातु के फ्रेम के साथ-साथ लकड़ी के टॉप वाला।

लकड़ी का टॉप इसलिए लगाया जाता है कि यह झटकों को सहन कर लेती है और फिनिश हुए कम्पोनेंट्स को खराब नहीं करती है। एक सामान्य सिंगल पोजीशन वर्क बेंच का साइज 2 मीटर लंबा, 1 मीटर चौड़ा और 80 से.मी. ऊंचा होना चाहिए। 

सुरक्षा (Safety)

सुरक्षित रहना ही सुरक्षा है एक सुरक्षित स्थिति तब होती है जब क्षति या सम्पत्ति का नुकसान बहुत कम होता है और उसे सहा जा सकता है।

सुरक्षार्थ सावधानियां (Safety Precautions)

परिचय (Introduction) – वर्कशाप में कार्य करते समय प्रत्येक श्रमिक को अपने बचाव का ध्यान रखना चाहिए। “सावधानी हटी और दुर्घटना हुई” इसे प्रत्येक श्रमिक को सदैव याद रखना चाहिए। एक छोटी सी असावधानी बहुत बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है। इससे मशीन को हानि पहुंच सकती है, उत्पादन पर असर पड़ सकता है और कभी-कभी श्रमिक की जान का खतरा भी हो जाता है। इस प्रकार वर्कशाप में सावधानी का बहुत बड़ा महत्व है।

सुरक्षा एक क्रिया है जो हमारी सभी क्रियाओं को ऐसे व्यवस्थित और नियंत्रित करती है कि न तो हम स्वयं दुर्घटना के शिकार होते हैं और न ही अन्य लोग इससे प्रभावित होते हैं। अतः एक अच्छे शिल्पकार को सुरक्षा की जानकारी होती है। वह सुरक्षित और स्वीकृत कार्यविधियों को जानता है और व्यवहार में लाता है। । दुर्घटनाओं के कारण (Causes of Accidents)-वर्कशाप में प्राय: निम्नलिखित कारणों से दुर्घटनायें होती  है

1. श्रमिक की लापरवाही।

2. श्रमिक की अज्ञानता।

3. श्रमिक का कार्य में अधिक आत्मविश्वास।

4. श्रमिक की कार्य में अरूचि।

5. श्रमिक की अपनी स्वयं की और मशीन की क्षमता की अपेक्षा अधिक जल्दी कार्य करने की इच्छा।

6. मशीन की खराब दशा।

7. औजारों की खराब दशा।

8. श्रमिक द्वारा कार्य करने की ठीक विधि न अपनाना।

9.श्रमिक द्वारा कार्य के अनुसार उचित औजारों का प्रयोग न करना।

10.श्रमिक की मानसिक दशा ठीक न होना। 

11. मशीन के गतिशील पुर्जी जैसे गियर, बेल्ट, पुली आदि पर गार्ड (guard) का प्रयोग न करना। .

12. श्रमिक की पोशाक ठीक न होना।

13. उत्पादित पुों को सही स्थान पर न रखना।

14. वर्कशाप में बिजली और लाइट की व्यवस्था ठीक न होना।

सुरक्षा नियम (Safety Rules)-वर्कशाप में कार्य करते समय सुरक्षा के लिए प्रायः निम्नलिखित नियम अपनाने चाहियें

सामान्य सुरक्षा नियम (General Safety Rules)

1. श्रमिक को अपने कार्य के लिये पूर्ण जानकारी कर लेनी चाहिए। यदि कोई संदेह हो तो वरिष्ठ अधिकारी से पूछ लेना चाहिए।

2. अपने कार्य स्थल को साफ रखना चाहिए।

3. कार्य करते समय प्रत्येक श्रमिक को वर्कशाप की चुस्त फिटिंग वाली पोशाक पहननी चाहिए। कार्य करते समय कमीज की लंबी आस्तीनों को ऊपर चढ़ा लेना चाहिए।

5. किसी श्रमिक के बाल लंबे है तो कार्य करते समय सुरक्षा टोपी पहन कर उन्हें आवृत कर लेना चाहिए।

6. वर्कशाप में कार्य करते समय किसी भी श्रमिक को अंगुठी, घड़ी, मफलर और टाई आदि नहीं पहननी चाहिए।

7. वर्कशाप में कार्य करते समय आंखों के बचाव के लिये चश्मा और पैरों के बचाव के लिये मोटे तलों वाले तेल प्रतिरोधी जूते पहनने चाहिए।

8. बिना जानकारी के किसी भी मशीन को छूना नहीं चाहिए।

9. कार्य करते समय आपस में मजाक या मूर्खतापूर्ण आचरण नहीं करना चाहिए।

10. वर्कशाप के फर्श पर तेल या ग्रीस आदि नहीं फैलाना चाहिए।

11. सीढ़ी का प्रयोग करने के लिये उसे धरातल पर अच्छी तरह से रुकावट लगा कर प्रयोग में लाना चाहिए।

12. यदि किसी कारणवश दुर्घटना हो जाये तो उसकी सूचना वरिष्ठ अधिकारी को तुरंत देनी चाहिए।

हस्त औजारों से सुरक्षा (Safety with Hand Tools)

1. कार्य-क्रिया के अनुसार सही औजारों का प्रयोग करना चाहिए। 

2. खराब औजारों को प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।

3. बिना दस्ते (Handle) की रेती का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

 4. टूटे या ढीले दस्ते वाले हथौड़े का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

 5. छत्रक मत्थे (Mushroom Head) वाली छैनी या पंच का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

6. रेती का प्रयोग उत्तोलक (Lever) की तरह नहीं करना चाहिए।

 7. स्टील रूल का प्रयोग पेंचकस की तरह नहीं करना चाहिए।

 8. पेंचकस द्वारा पेंच को कसने या खोलने के लिये कार्य को हाथ में नहीं पकड़ना चाहिए।

 9. सदैव ठीक साइज के स्पेनर का प्रयोग करना चाहिए। 

10. सूक्ष्ममापी यंत्रों को हस्त औजारों के साथ मिला कर नहीं रखना चाहिये।

मशीन से सुरक्षा (Safety with Machines) 

1. मशीन पर कार्य करने से पहले यह जानकारी करना आवश्यक है कि वह किस बटन से चालू  होती है और किससे बंद होती है।

2. मशीन पर कार्य करते समय छीलन (Chips) को हाथ से साफ नहीं करना चाहिये।

3. चालू मशीन को साफ करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये।

4. यदि कार्य करते समय कुछ खराबी आ जाये तो मशीन को तुरन्त बंद कर देना चाहिये।

5. मशीन पर कार्य करते समय चश्मा पहनना आवश्यक है।

इलेक्ट्रिक पॉवर से सुरक्षा (Safety with Electric Power)

 1. यदि बिजली की पॉवर में कोई खराबी दिखाई दे तो उसकी सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारी को तुरन्त देनी चाहिए।

2. बिजली की नंगी तारों को प्रयोग में नहीं लाना चाहिये।

3. यदि बिजली का प्लग या तार वगैरा टूट जाये तो उन्हें बदलवा लेना चाहिये। 

4. केवल कुशल बिजली मिस्त्री को ही बिजली ठीक करने की अनुमति देनीचाहिये।

भार उठाने के लिये सुरक्षा (Safety for Lifting Loads)

1. किसी ऐसे बोझ को उठाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये जिससे शरीर की नसों पर तनाव आने की संभावना हो।

2. उठाकर ले जाने वाली सामग्री (material) का सुरक्षापूर्ण संचालन (movement) करने में कुछ कठिनाई अनुभव होने पर अपने साथी से सहायता मांग लेनी चाहिये।

3. किसी बोझ को उचित ढंग से उठाने के लिये बोझ के जितने नजदीक हो सके उतना नजदीक झुकना चाहिये, अपनी पीठ को सीधा रखना चाहिये और बोझ को मजबूती से पकड़ कर टांगो को सीधा करते हुए उठाना चाहिए।

4. सदैव उचित प्रकार का उत्थापन साधन (Lifting Device) उपयोग में लाना चाहिये। 

5. किसी वस्तु का स्थानान्तर करने से पहले रास्ते के फर्श पर फिसलने वाले भागों को साफ कर लेना चाहिये और बाधा उत्पन्न करने वाले पदार्थों को हटा देना चाहिये।

आग और आग की दुर्घटनायें (Fire and Fire Accidents)

परिचय (Introduction) –आग लगाना एक प्रकार की विधि है जिससे गर्मी और लाइट पैदा होती है। यदि किसी कारणवश आग से दुर्घटना हो जाती है तो उसे आग की दुर्घटना कहते हैं। आग की दुर्घटना प्रायः लापरवही के कारण होती है जिससे जान और माल दोनों का नुकसान हो सकता है। आग फैलाने के लिये ताप, आक्सीजन और ईंधन आवश्यक तत्व होते है।आग फैलाने के लिए तीन तत्वों अर्थात ईंधन, ताप और ऑक्सीजन का होना ईंधन अत्यावश्यक होता है जिसे फायर ट्रैगल कहते हैं (चित्र 1.2)। जब ये तीनों आपस में मिलते हैं तो ईंधन के पर्याप्त गर्म होने और हवा में ऑक्सीजन होने के कारण आग फैल जाती है।

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चित्र 1.2 फायर गल (Fire Triangle)

आग के प्रकार (Types of Fire)

आग प्रायः निम्नलिखित प्रकार की होती है

 1. कार्बोनेशियस फायर (Carbonatious Fire) – जो आग लकड़ी, कच्चे कोयले और पक्के कोयले से जलाई जाती है उसे कार्बोनेशियस फायर कहते हैं। इसको बुझाने के लिए पानी का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त सोडा एसिड एक्स्टींग्यूशर भी प्रयोग में लाया जा सकता है।

2. ऑयल फायर (Oil Fire) – जो आग तेलीय पदार्थों से जलाई जाती है वह ऑयल फायर कहलाती है। इस प्रकार की आग खतरनाक होती है। इसको बुझाने के लिए कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस आग को बुझाने के लिए फोम फायर एक्स्टींग्यूशर का प्रयोग किया जाता है।

 3. इलेक्ट्रिकल फायर (Electrical Fire) – जो आग बिजली से जलती है उसे इलेक्ट्रिकल फायर कहते हैं। इस आग को बुझाने के लिए सी.टी.सी. फायर एक्स्टींग्यूशर का प्रयोग किया जाता है। 

 (Safety Precautions)

1.जिन पदार्थों को आग जल्दी पकड़ती है उन्हें अलग स्थान पर रखना चाहिए।

 2. वर्कशाप में धूम्र-पान नहीं करना चाहिए।

3. कार्य करने वाले स्थान को अच्छी तरह से साफ रखना चाहिए और मशीन को साफ करने वाले कॉटन वेस्ट को प्रयोग में लाने के बाद एक पीपे या बॉक्स में डाल कर ढक्कन से बंद कर देना चाहिए।

4. मध्यान्तर के समय और शाम को वर्कशाप बंद करते समय बिजली के बटनों को ऑफ कर देना चाहिए।

5. आग बुझाने के लिए वर्कशाप में रेत और पानी की बाल्टियां भर कर रखनी चाहिए।

6. आग बुझाने के लिए वर्कशाप में फायर एक्टींग्यूशर तैयार रखने चाहिएं।

7. किसी कारणवश आग लग जाये तो वर्कशाप की खिड़कियां और दरवाजे बंद रखने चाहिएं जिससे आक्सीजन को कंट्रोल किया जा सकता है।

8. यदि आग तेल से लगी हो तो उसे बुझाने के लिए रेत या मिट्टी का प्रयोग करना चाहिए और पानी का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

9. यदि आग लकड़ी या कोयले में लगी है तो पानी का प्रयोग करना चाहिए।

10. आग फैलने पर फायर ब्रिगेड को टेलीफोन करके उसकी सेवायें प्राप्त की जा सकती है।

फायर एक्स्टींग्यूशर (Fire Extinguisher)

परिचय (Introduction) – यह एक प्रकार का उपकरण है जो प्रायः शंकु के आकार का होता है और लोहे का बनाया जाता है। इसके प्रकार के अनुसार इसमें गैसें या केमिकल भर दिये जाते हैं जिनसे आग को बुझाया जा सकता है। इनको वर्कशाप में निश्चित स्थान पर लटका दिया जाता है और आवश्यकता पड़ने पर आग बुझाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

Fire Extinguisher

प्रकार (Types)

1. सोडा एसिड एक्स्टींग्यूशर (Soda Acid Extinguisher) – इस चित्र 1.3 फायर एक्स्टींग्यूशर प्रकार के एक्स्टींग्यूशर का प्रयोग कार्बोनेशियस फायर को बुझाने के लिए प्रयोग ( (Fire Extinguisher) में लाया जाता है। इसको इलेक्ट्रिकल या आयल फायर पर प्रयोग मे नहीं लाना चाहिए। इसको पहचानने के लिये एक्स्टींग्यूशर की बॉडी पर लगभग 100 मि.मि. साइज का पीले रंग का हाथ बना होता है। 

2. फोम एक्स्टींग्यूशर (Foam Extinguisher) – इस प्रकार के एक्स्टींग्यूशर का प्रयोग ऑयल फायर को बुझाने के लिए किया जाता है। इसमें दो कन्टेनर होते हैं। बाहरी कन्टेनर में सोडा बाई कार्बोनेट का घोल और अन्दरूनी कन्टेनर में एल्युमीनियम सल्फेट का घोल होता है। इसको पहचानने के लिए एक्स्टींग्यूशर की बॉडी पर लगभग 100 मि.मी. साइज का भूरे रंग का हाथ बना होता है।

3. सी.टी.सी. एक्स्टींग्यूशर (C.T.C. Extinguisher) – इस प्रकार के एक्स्टींग्यूशर का प्रयोग इलेक्ट्रिकल फायर पर किया जाता है। यह एक पीतल का सिलेण्डर होता है। जिसमें डबल एक्टिंग फोर्स पंप लगा होता है। इसका प्रयोग ऊपर लगे हैंडल के द्वारा किया जाता हैं। इसमें सिलण्डर को कार्बन टेटरा क्लोराइड के तरल पदार्थ से भर दिया जाता है। जब इसका प्रयोग किया जाता है यह भाप के रूप में निकलता है।

 4. ड्राई केमिकल एक्स्टींग्यूशर (Dry Chemical Extinguisher) – इस प्रकार के एक्स्टींग्यूशर का प्रयोग इलेक्ट्रिकल फायर पर किया जाता है। यह प्रायः प्लंजर टाइप होता है। इसमें कार्बन डाई ऑक्साइड या नाइट्रोजन गैस के द्वारा सोडियम बाई कार्बोनेट पाउडर को बाहर निकाला जाता है। CO

प्राथमिक चिकित्सा (First Aid)

परिचय (Introduction) – समझदार कारीगर कार्यशाला में अपना कार्य सावधानी और सुरक्षा को ध्यान में रखकर करते हैं परंतु फिर भी यह देखा गया है कि कार्यशाला में किसी न किसी कारणवश छोटी-बड़ी दुर्घटनाायें होती ही रहती हैं। इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि हमें प्राथमिक चिकित्सा के बारे में जानकारी हो क्योंकि तुरंत डाक्टरी सहायता मिलने में देरी हो सकती है। इस प्रकार घायल व्यक्ति की चिकित्सक के आने से पहले जो प्राथमिक सहायता की जाती है उसे प्राथमिक चिकित्सा कहते हैं। प्राथमिक चिकित्सा के लिये ज्ञान और अभ्यास का होना अति आवश्यक है। प्राथमिक चिकित्सा के बाद घायल व्यक्ति को चिकित्सक के सुपुर्द कर देना चाहिए।

प्राथमिक चिकित्सा के लिए कुछ निर्देश (Some Instructions for First Aid)

प्राथमिक चिकित्सा करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण निर्देश नीचे दिये गये हैं

1. प्राथमिक चिकित्सा करते समय घायल व्यक्ति को देखकर घबराना नहीं 

2. प्राथमिक चिकित्सा करते समय दुर्घटना के कारण की जानकारी कर लेने के बाद मशीन, गैस या बिजली के मेन स्विच को ऑफ कर देना चाहिए।

3. जहां तक संभव हो घायल व्यक्ति को दुर्घटना स्थल से हटा देना चाहिए।

4.घायल व्यक्ति के चारों ओर भीड़ नहीं लगने देना चाहिए।

 5.घायल व्यक्ति की शारीरिक लक्षणों के अनुसार ही प्राथमिक चिकित्सा करनी चाहिए।

6.घायल व्यक्ति के साथ सहानुभूतिपूर्वक बात करनी चाहिए। 

7. यदि घायल व्यक्ति को रक्तस्त्राव हो तो उसे तुरन्त रोकने के उपाय करने चाहिए। 

8. यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति मूर्छित हो गया तो उसके मुंह पर पानी की छीटें मारने चाहिए और आवश्यकतानुसार चूना और नौशादर मिलाकर सूंघाना चाहिए। गया तो उस पर टिंचर आयोडिन

9. यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति का कोई अंग छिल गया हो या कट-फट या आवश्यकतानुसार कोई अन्य दवाई लगाकर और डाक्टरी रूई के साथ पट्टी बांध देनी चाहिए।

 10. यदि दुर्घटना अधिक बड़ी हो गई हो तो घायल व्यक्ति को तुरंत अस्पताल भेजने का प्रबंध करना चाहिए।

दुर्घटनायें और प्राथमिक चिकित्सा (Accidents and First Aid)

घाव होना (Wounds) – दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को यदि चोट लगने या कटने के कारण घाव हो गया हो तो सबसे पहले खून रोकने का उपाय करना चाहिये। इसके लिये गुनगुने पानी में किसी कीटाणुरोधक दवा को मिलाकर घाव को धो देना चाहिए और उसे डाक्टरी रूई से साफ करने के बाद घाव पर बोरिक लिंट भिगोकर लगा देना चाहिए और पट्टी बांध देनी चाहिये।

खून बहना (Bleeding) – चोट लगने या कटने के कारण यदि खून बह रहा हो तो खून निकलने वाले स्थान पर ठंडे पानी की पट्टी या बर्फ रखने से खून रुक जाता है। यदि खून बाहरी घाव से बह रहा हो तो उस स्थान का दबा देने से खून को रोका जा सकता है।

मोच आना (Sprain) – दुर्घटना के कारण यदि हाथ या पैर पर मोच आ जाये तो बड़ी पीड़ा होती है, जोड़ पर सूजन आ जाती है, जोड़ जकड़ जाता है और उसकी हरकत बंद हो जाती है। इसके लिये, ठंडे या गर्म पानी की पट्टियां बारी-बारी से लगभग 5-5 मिनट तक रखनी चाहिए।

जलना और झुलसना (Burning and Scalding) – आग या किसी गर्म वस्तु को छू जाने, किसी रस्सी या वस्तु से रगड़ने और तेजाब से जलने को जलना कहते हैं। किसी तरल पदार्थ से जलने को झुलसना कहते हैं ) इन दोनों के लक्षण और उपचार प्रायः एक जैसे होते हैं।जलने और झुलसने से खाल सुर्ख लाल हो जाती है, छाले पड़ जाते हैं और चमड़ी भी उतर सकती है। कभी-कभी जलने और झुलसने वाले स्थान से खून और पानी निकलता है।

इसके उपचार के लिए यदि प्रभावित EAR पर कोई कपड़ा चिपका हुआ हो तो उसे उतार देना चाहिए औ(जले हुए स्थान पर साफ कपड़ा या डाक्टरी स्पारख कर के पानी को बराबर भाग में लगाने से भी आराम आता है। इसके अतिरिक्त अंडे की सफेदी का लेप भी बहुत लाभदायक होता है।जलने और झुलसने के कारण यदि छाले पड़ जाये तो उन्हें कभी भी फोड़ना नहीं चाहिए और जले हुए स्थान को हवा से बचाना चाहिए।

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आंख में किसी वस्तु का पड़ना (Eye Injury)

आंख में कोई कण या तिनका चला जाये तो बहुत कष्ट होता है ) कभी-कभी इससे आंख में घाव भी हो जाता है। जिस आंख में कण वगैरा पड़ जाये उसे कभी भी मलना नहीं चाहिए बल्कि दूसरी आंख को मलना चाहिए जिससे पहली वाली आंख में पानी आ जायेगा और कण निकल जायेगा।

कोई कण वगैरा आंख की ऊपरी पलक में है तो उसे नीचे वाली पलक पर दो या तीन बार चढ़ाना चाहिए।

ऊपरी पलक से कण न निकले तो दियास्लाई का सहारा देकर ऊपरी पलक को पलट देना चाहिए। और किसी साफ कपड़े के गीले कोने से कण को निकाल देना चाहिए।

कोई कण वगैरा आंख की निचली पलक में हो तो उसे नीचे की ओर पलट कर किसी साफ कपड़े के गीले कोने से निकाला जा सकता है।

कोई नुकीली वस्तु आंख में पड़ जाये तो उसे छेड़ना नहीं चाहियें और तुरंत डाक्टर की सहायता लेनी चाहिए। आंख पर सूजन हो तो उसे हल्के गर्म पानी से धोना या सेंकना चाहिए।

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कुचल जाना (Bruising)

किसी व्यक्ति के शरीर पर भारी वस्तु गिर जाये या ठोकर लग जाये तो प्रभावित स्थान पर गहरा धब्बा पड़ जाता है और सूजन हो जाती है जिसे कुचल जाना कहते हैं। इसके उपचार के लिए टिंचर आयोडिन लगानी चाहिए। इसके अतिरिक्त पानी और स्प्रिट को मिलाकर रुई को उसमें भिगोकर प्रभावित स्थान पर बांधना चाहिए।

प्राथमिक चिकित्सा किट (First Aid Kit)

प्राथमिक चिकित्सा किट ऐसे स्थान पर स्थित होनी चाहिए जहां पर आसानी से पहुंचा जा सके। इसमे प्रायः निम्नलिखित सामान्य सामग्री होनी चाहिए:

प्राथमिक चिकित्सा पुस्तक

  • विभिन्न साइजों की स्टेलाइट एडेसिव पट्टियां
  • विभिन्न साइजों के गोज पैड्स
  • एडेसिव टेप
  • टैंगुलर और रोलर पट्टियां
  • कॉटन का एक रोल
  • प्लास्टर, कैंची, पैन टार्च,
  • लेटेक्स ग्लोब्स के दो रोल
  • छोटी चिमटी
  • सूई
  • सूखा हुआ तोलिया और साफ सुथरे कपड़े के टुकड़े
  • एंटिसेप्टिक (सेवलोन या डिटोल)
  • थर्मोमीटर
  • पैट्रोलियम जैली की ट्यूब
  • विभिन्न साइजों की सेफ्टी पिनें
  • साबून वगैरा।

बिना-प्रिस्क्रिप्शन वाली दवाईयां (Non-prescription Drugs)

  • दर्द दूर करने वाली एस्पिरिन या पैरासिटामोल
  • दस्त दूर करने वाली दवाईयां
  • मधुमक्खी के काटने के लिए एंटी हिस्टामाइन क्रीम
  • कब्ज दूर करने वाली दवाईयां 

(Some Important Hints Related to Introduction and Safety)

परिचय एवं सुरक्षा से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण संकेत

1. जो टूल्स हाथ द्वारा प्रयोग किये जाते है उन्हें हैंड टूल्स कहते हैं।

2. फिटर एक शिल्पकार है जो कि लगभग तीन चौथाई कार्य हैंड टूल्स की मदद से तथा एक चौथाई कार्य मशीन टूल्स की मदद से करता है।

3. सुरक्षार्थ सावधानियों का पालन करके दुर्घटना से बचा जा सकता है।

 4. अत्यधिक आत्म विश्वास से बहुत बड़ी दुर्घटना हो सकती है।

5. किसी मशीन पर कार्य करते समय कुछ गड़बड़ महसूस हो तो मशीन का मेन स्विच तुरंत ऑफ कर देना चाहिए।

6. ताप, इंधन तथा ऑक्सीजन के कम्बीनेशन से फायर उत्पन्न होती है।

7. ऑयल फायर के लिए फोम टाइप, इलेक्ट्रिकल फायर के लिए सी.टी.सी. तथा कार्बोनेशियस फायर के लिए सोडा एसिड एक्स्टींग्यूशर प्रयोग करने चाहिए।

8. यदि किसी श्रमिक के कपड़ों में आग लग जाए तो उसे फर्श पर लिटा कर घुमा देना चाहिए।

 9. वर्कशाप में यदि कोई दुर्घटना हो जाए तो सबसे पहले उसकी सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारी को देनी चाहिए।

10. जहरीली गैसों से बचाव के लिए गैस मास्क का प्रयोग करना चाहिए।

 11. दुर्घटना एक अवांछनीय, अनियमित तथा बिना पूर्व नियोजित घटना या आकस्मिक आपत्ति है जो किसी क्रिया या कार्य के लिए अवरोध उत्पन्न करती है।

12. प्राथमिक चिकित्सा तुरंत तथा अस्थाई इलाज है जो कि डाक्टर के आने से पूर्व किसी ऐसे व्यक्ति का किया जाता है जिसे दुर्घटना के कारण चोट लग जाए या वह आकस्मिक बीमार पड़ जाए।

1- पेंचकस (Screw Driver) किसे कहते है ?

2- प्लायर्स (Pliers) किसे कहते है ?

3- वाइस (Vice) किसे कहते है

Q.1  फिटर क्या है?

Ans – फिटर एक ऐसा कारीगर होता है जो किसी भी  मशीनरी उपकरण को एक साथ समायोजित तथा उसका  रखरखाव करता है उसे फिटर कहते हैं

Q.2     What is the full form of fitter?

Ans – फिटर का फुल फॉर्म इस प्रकार है – 
F – Fitness  ( फिटनेस ),  
I –  Intelligent ( बुद्धिमान ) ,
T – Talent ( प्रतिभा ),
T – Target 🎯 ( लक्ष्य ) ,
E  – Efficient  ( कुशल ) ,
R  – Regularity  ( नियमितता )

Q.3 How many types of fitters are there?( कितने प्रकार के फिटर होते हैं ?

Ans There are three types of fitter -(फिटर तीन प्रकार के होते हैं-)
      1- Bench fitter ( बेंच फिटर ) 
       2 -Assembly fitter ( असेंबली फिटर )
       3 -Erection Fitter  ( निर्माण फिटर )

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