मार्किंग और मार्किंग टूल्स (Marking and Marking Tools)

मार्किंग और मार्किंग टूल्स (Marking and Marking Tools)

मार्किंग मीडिया (Marking Media)

परिचय (Introduction) – जब किसी जॉब को बनाया जाता है तो जॉब की ड्राइंग के अनुसार उस पर मार्किंग की जाती है। जॉब पर जितनी अच्छी व सही मार्किंग होगी वह उतना ही अच्छा बनाया जा सकता है। इस प्रकार मार्किंग करने से पहले जॉब की सतह को किसी उपयुक्त रंग या उसके समान कोई पदार्थ लगा दिया जाता है जिसे ‘मार्किंग मीडिया’ कहते हैं। मार्किंग मीडिया को जॉब की सतह पर लगाने से यह लाभ होता है कि जॉब की सतह पर रेखायें खींचते समय वे बिलकुल साफ-साफ दिखाई देती हैं।

ये कितने प्रकार ( Types )के होते है –

1. साधारण ब्लैक बोर्ड चॉक (Ordinary Black Board Chalk)– इसका प्रयोग प्रायः कास्ट ऑयरन के पार्टस की रफ सतहों पर किया जाता है। इसका प्रयोग स्टील के बने पार्टी की रफ सतहों पर भी किया जा सकता है।

2. तूतिया (Blue Vitriol)– यह एक प्रकार का घोल है जिसमें 1/4 भाग गैलन पानी में 4 से 5 ओंस नीला थोथा (Copper Sulphate) मिलाया जाता है और 4 से 5 बूंद सल्फ्यूरिक एसिड भी डाला जाता है। जब इसको धातु की सतह पर लगाया जाता है तो धातु की सतह का रंग तांबे के रंग जैसा हो जाता है इसका प्रयोग करने से पहले जॉब की सतह को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिये।

3. ले आउट डाई (Layout Dye)– यह एक प्रकार का स्याही के रंग जैसा द्रव होता है जिसको धातु की सतह पर ब्रुश से लगाया जाता है। यह जॉब की सतह पर आसानी से लग जाता है, जल्दी सूख जाता है और इसको आसानी से उतारा भी जा सकता है। जब इसको जॉब की सरफेस पर जॉब की सरफेस पर लगाया जाता है तो सरफेस नीले रंग की हो जाती है। इसका प्रयोग करने से पहले यदि तेल या ग्रीस लगी हो तो उसे अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।

4. व्हाइट कोटिंग (White Coating) –चॉक के पाउडर को पानी में मिला कर और थोड़ी सी एल्कोहल मिलाकर इसका घोल बनाया जाता है। एल्कोहल मिलाने से यह लाभ होता है कि जॉब की सरफेस पर जंग नहीं लगता और वह जल्दी सूख जाती है। इसका प्रयोग भी ब्रुश की सहायता से किया जाता है।

5. क्विक-ड्राइंग वार्निश और पेंट (Quick-drawing Varnish and Paint)– -इनका प्रयोग बड़े साइज की स्टील और ऑयरन कास्टिंग्स की मशीन की हुई सरफेसों पर किया जाता है।

उपयोग की विधि (Method of Application) 
1. वर्कपीस से मिट्टी, धूल, स्केल और कोरोजन को साफ करें।
2. सरफेस फिनिश के अनुसार मार्किंग मीडिया का चमन करें।
3. चित्र 3.1 में दर्शाए अनुसार ब्रुश की वर्टिकल और हारिजांटल मोशन के द्वारा मार्किंग मीडिया की यूनिफार्म पतली परत लगाए।

सावधानियां (Precautions)

1. मार्किंग मीडिया का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जॉब की सरफेस पर मार्किंग मीडिया की अधिक मोटी तह न जमने पाये।

2. जॉब की सरफेस पर मार्किंग मीडिया की तह पूरी सरफेस पर बराबर लगनी चाहिए। 

3.तूतिया (Blue Vitriol) का प्रयोग हाथ से छू कर नहीं करना चाहिये।

 4. जब तक जॉब की सरफेस पर मार्किंग मीडिया सूख न जाये, मार्किंग नहीं करनी चाहिये।


मार्किंग और मार्किंग टूल्स (Marking and Marking Tools)

मार्किंग आउट (Marking Out)

परिचय (Introduction)-जब किसी जॉब को बनाया जाता है तो उस पर ड्राइंग के अनुसार मार्किंग करनी पड़ती है। की हुई मार्किंग के अनुसार कारीगर जॉब को तैयार करता है। इस प्रकार जॉब बनाने से पहले उस पर मार्किंग करने की क्रिया को ‘मार्किंग आउट’ कहते हैं।

मार्किंग के उद्देश्य (Purposes of Marking)

1. मार्किंग की हुई लाइनें जॉब बनाते समय कारीगर का पथ प्रदर्शन करती हैं जिससे वह जॉब को सही माप में बना सकता हैं।

2. मार्किंग करने से कारीगर को यह पता लग जाता है कि जॉब का सही आकार बनाने के लिये फाइलिंग या मशीनिंग के द्वारा धातु की कितनी मात्रा काटनी है।

लेइंग आउट विधिया (Laying Out Techniques)

1. मार्किंग करते समय सबसे पहले सीधी हारिजांटल वर्टिकल और कोण वाली लाइनें खीचनी चाहिए। 

2. इसके बाद वृत, चाप, वक्राकार लाइनें खींचनी चाहिए।

मार्किंग और मार्किंग टूल्स (Marking and Marking Tools)


स्ट्रेट लाइनें खींचना (Scribing Straight Lines)

स्ट्रेट लाइनें स्टील रूल और स्क्राइबर की सहायता से खींची जाती हैं। स्क्राइबर की नोंक मोशन की दिशा में होनी चाहिए। स्टील रूल से बाहर की ओर होनी चाहिए अर्थात हारिजांटल प्लेन के साथ 75-80° पर होना चाहिए।

लम्बरूप  लाइनें खीचना ( Scribing Perpendicular Lines )-लम्बरूप लाइनें स्क्राइबर और ट्राई स्क्वायर की सहायता से खींची जाती हैं

मार्किंग की विधिया (Methods of Marking) – जॉब पर मार्किंग करने के कई तरीके प्रयोग में लाये जाते हैं जिनमें से निम्नलिखित प्रायः प्रयोग में लाये जाते हैं

डेटम लाइन विधि (Datum Line Method)

यह  तरीका प्रायः उस समय प्रयोग में लाया जाता है जब किसी जॉब की दो संलग्न भुजायें (Adjacent Sides) अच्छी तरह से फिनिश की हुई और 90° के कोण में बनी हों। इसमें पहले एक आधार लाइन खींच ली जाती है जिसे डेटम लाइन कहते हैं। इसके पश्चात् इस डेटम लाइन से दूसरी मार्किंग की लाइनें लगाई जाती हैं। जैसे किसी धातु के टुकड़े से एक आयताकार आकार का जॉब बनाना है तो सबसे पहले उसकी दो संलग्न भुजाओं को 90° के कोण को अच्छी तरह से फाइलिंग या मशीनिंग करके फिनिश कर लिया जाता है, इसके पश्चात एक समानान्तर और एक लम्बवत् लाइनें खींच ली जाती है जिन्हें डेटम लाइनें कहते हैं और दूसरी रेखायें इन रेखाओं के संदर्भ में खींच कर मार्किंग की जाती हैं।

सेंटर लाइन विधि (Centre Line Method) – यह तरीका वहां पर प्रयोग में लाया जाता है जहां पर डेढ़े मेढ़े कार्यों पर मार्किंग करनी हो और जिनका कोई भी सिरा फिनिश न किया हुआ हो। ऐसे जॉब पर मार्किंग करने के लिये पहले अंदाज से सेंटर लाइन लगा दी जाती है और इस सेंटन लाइन के संदर्भ (Reference) से मार्किंग की दूसरी रेखायें लगाई जाती हैं।


संलग्न भुजा के समानान्तर रेखाओं की मार्किंग करना (Marking of Lines Parallel to Adjacent Side)

यदि किसी संलग्न भुजा के समानान्तर लाइनें खींचने हो तो जॉब की फिनिश की हुई भुजा को मार्किंग ऑफ टेबल पर ऐंगल प्लेट का सहारा देकर रख देना चाहिये। इसके पश्चात् लम्बवत्, लाइनें (संलग्न भुजा के समानान्तर) खींचने के लिये ट्राई स्क्वायर का प्रयोग करके उसके ब्लेड की सीध में लाइनें खींची जा सकती हैं जो संलग्न भुजा के समानान्तर होंगी।


टर्न ओवर विधि से समानान्तर लाइनों की मार्किंग करना (Marking of Parallel Lines by Turn Over Method)

इस विधि को उस समय प्रयोग में लाते है जब जॉब की सभी भुजायें 90° के कोण में फिनिश हो। इस विधि में जॉब की संलग्न भुजा के समान्तर लाइनें खींचने के लिये जॉब की संलग्न भुजा को झुका कर मार्किंग ऑफ टेबल पर ऐंगल प्लेट का सहारा देकर रख दिया जाता है। इसके पश्चात् सरफेस गेज से या वर्नियर हाइट गेज से उसके समानान्तर लाइनें खींची जा सकती हैं। इस प्रकार जॉब की सभी भुजाओं को 90° के कोण में फिनिश करने के बाद प्रत्येक भुजा को मार्किंग ऑफ टेबल पर रख कर उसके समानान्तर रेखायें खींची जा सकती हैं।

कोण विभाजन विधि द्वारा वृतखंड की मार्किंग करना (Marking of Sector by Angular Distribution Method)

यह विधि वहां पर प्रयोग में लाई जाती है जब सेक्टर का कोण दिया हुआ हो। इसमें पहले एक वृत खींच लिया जाता है। वृत में 360° होते हैं। मान लिया कि सेक्टर का कोण 45° का है तो 360° + 45° =8 है। इस प्रकार वृत्त केंद्र से उसके 8 बराबर भाग कर देगें जिनमें एक भाग 45° के कोण वाला होगा। इस प्रकार 45° के सेक्टर की मार्किंग की जा सकती हैं।


टेम्पलेट द्वारा मार्किंग करना (Marhing by Tempate)-इस प्रकार की मार्किंग वहां पर की जाती है जहां पर एक ही प्रकार की मार्किंग कई जॉबों पर करनी हो। ऐसी मार्किंग करने के लिए जॉब के आकार के अनुसार पतली शीट से एक टेम्पलेट बना ली जाती है और इस टेम्पलेट को जॉब पर रख कर स्क्राइबर की सहायता से लाइनें लगा कर मार्किंग की जा सकती है।


गोल छड़ के सिरे का केंद्र निकालना (Marking of Centre on Round Rod End)


(i) जैनी केलिपर्स द्वारा (By Jenny Calipers)-इस विधि में जैनी केलिपर को गोल जॉब की त्रिज्या (Radius) से थोड़ा कम या अधिक खोलकर भिन्न-भिन्न चार स्थानों से चापें (Arcs) लगाई जाती हैं और इनके विपरित कोनों को मिलाकर सेंटर निकाला जा सकता है। देखिये चित्र 3.4।


(ii) सरफेस गेज या वर्नियर हाइट गेज द्वारा (By Surface Gauge or Vernier Height Gauge)-इस विधि में गोल जॉब को सरफेस प्लेट पर ‘वी’ ब्लॉक पर रख कर और वर्नियर हाइट गेज या सरफेस गेज को जॉब के सेंटर से थोड़ा कम या अधिक खोल कर और जॉब को घुमा कर भिन्न-भिन्न चार स्थानों से लाइनें लगा कर एक वर्ग बना लिया जाता है। इस वर्ग के विपरित कोनों को मिलाकर सेंटर निकाला जा सकता हैं। देखिए चित्र 3.5।

(iii) सेंटर हैड द्वारा (By Centre Head)-इस विधि में कम्बीनेशन सेट के सेंटर हैड का प्रयोग किया जाता है। सेंटर हैड को मोल जॉब की सतहों के साथ सटा कर लगा करके उसके ब्लेड के सीध में लाइन खींच ली जाती है। इस प्रकार विभिन्न दो या तीन स्थानों से लाइनें खींची जाती हैं। जिस बिंदु पर तीन रेखायें काटती हैं वह सेंटर होगा। देखिये चित्र 3.61


(iv) बैल पंच विधि (Bell Punch Method) – इस विधि में बैल पंच को गोल जॉब के सिरे पर रख कर हैमर से हल्की सी चोट लगाई जाती है जिससे सेंटर में स्वयं पंचिगं हो जाएगी।

मार्किंग करते समय ध्यान में रखने योग्य संकेत (Hints to be Noted While Marking) मार्किंग करते समय निम्नलिखित संकेतों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए

1. मार्किंग करने से पहले जॉब की ड्राइंग को अच्छी तरह से पढ़ कर समझ लेना चाहिए।

2. मार्किंग करने से पहले जॉब की माप को चैक करना चाहिए और यह भी चैक कर लेना चाहिए कि जिस जॉब की मार्किंग करनी है वह कहीं से खराब तो नहीं है।

3. मार्किंग करने से पहले जॉब की ड्राइंग के अनुसार सही औजारों का चयन कर लेना चाहिए। स्क्राइबरव पंच के प्वाइंट को चैक कर लेना चाहिए कि उनकी धार ठीक लगी है कि नहीं।

 4. मार्किंग करने से पहले चैक करना चाहिए कि जिस जॉब पर मार्किंग करनी है उसकी सरफेस पर मार्किंग मीडिया ठीक ढंग से लगा है कि नहीं।

5. मार्किंग करते समय इन बात का ध्यान रखना चाहिए कि सबसे पहले समतल (Horizontal) लाइनें लगाई जाए, फिर लंबवत (Vertical), फिर कोण वाली और आखिर में चाप व वृत इत्यादि की मार्किंग करनी चाहिए।

6. पंचिंग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पंच लाइन पर सीधे लगें और उनके बीच का अन्तर लगभग सही हो।

7. मार्किंग करने के बाद औजारों को और जॉब को अच्छी तरह से साफ कर देना चाहिए।
लेआउट दोष (Layout Defects)


1. वर्कपीस की वास्तविक डायमेंशनों और ब्लू प्रिंट में अंकित डायमेंशनों के बीच भिन्नता जो कि श्रमिक की लापरवाही या लेआउट टूल्स की अशुद्धता के कारण हो सकती है।

2. सरफेस गेज या वर्नियर हाइट गेज की सेटिंग में गलती जो कि श्रमिक की अपर्याप्त कुशलता या लापरवाही के कारण हो सकती है।

3. वर्कपीस की सेटिंग में गलती जो कि सरफेस प्लेट की अपर्याप्त लेवलिंग के कारण हो सकती

ट्रैमल (Trammel)


परिचय (Introduction)इसका प्रयोग बड़े साइज के वृत व चाप की मार्किंग करने के लिया किया जाता है। ये कार्य के अनुसार 15 से 50 से. मी. तक पाये जाते हैं।


बनावट (Construction) -इसकी बनावट में एक स्टील की छड़ (Rod) होती है जिसको बीम (Beam) कहते हैं। बीम के ऊपर दो स्लाइडिंग हैड होते हैं जिनको इस पर इधर-उधर खिसकाया जा सकता है। इन स्लाइडिंग हैडों को कसने के लिए क्लैम्पिंग नट (Clamping Nut) लगे होते हैं। स्लाइडिंग हैडो के साथ स्क्राइबर फिट किए जाते हैं। किसी-किसी ट्रेमल में एक स्लाइंडिग हैड के साथ कैरियर (Carrier) भी जुड़ा रहता है जिसके द्वारा सूक्ष्म एडजस्टमेंट (Fine Adjustment) भी किया जा सकता है क्योंकि इसके साथ एडजस्टमेंट स्क्रू भी फिट रहता है। स्लाइंडिंग हैड को क्लेम्पिंग नट की सहायता से बीम पर कहीं पर भी माप के अनुसार कसा जा सकता है और कैरियर की सहायता से सूक्ष्म एडजस्टमेंट कर सकते हैं। इस पर भी माप को स्टील रूल से लिया जाता है।


सावधानियां (Precautions)

1. ट्रैमल के स्क्राइबर के प्वाइंट तेज धार वाले होने चाहिए। 

2.समय-समय पर ट्रैमल को तेल या ग्रीस लगा देनी चाहिए जिससे इसको जंग लगने से बचाया जा सके।


मार्किंग ऑफ टेबल (Marking Off Table)


रिचय (Introduction)-इसके ऊपर मार्किंग करने वाले टूल्स और जॉब को रख कर मार्किंग की जाती है।


बनावट (Construction)-इसकी बनावट में वर्गाकार या आयताकार आकार की कास्ट ऑयरन की प्लेट होती है जिसको माइल्ड स्टील के बने स्टैण्ड के ऊपर फिट किया रहता है। यह स्टैण्ड प्रायः ऐंगल ऑयरन या चैनल से बनाया जाता है। इसकी ऊंचाई फर्श से 75 से. मी. से 90 से. मी. तक रखी जा सकती है प्रायः 90 x 90 x 80 से. मी. का मार्किंग ऑफ टेबल प्रयोग में लाया जाता है।

सावधानियां (Precautions)


1. कार्य करने से पहले इसको अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। 

2. इस पर हथौड़ी की चोट नहीं लगानी चाहिए। 

3. कार्य करने के बाद इसको अच्छी तरह से साफ करके तेल लगा देना चाहिए।


मार्किंग एवं मार्किंग टूल्स से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण संकेत ( Some Important Hints Related to Marking and Marking Tools )


1. केलिपर्स प्रायः हाई कार्बन स्टील से बनाये जाते हैं जिनके गेजिंग प्वाइंटों को हार्ड एवं टेम्पर कर दिया जाता है।

2 .आडलेग केलिपर को हर्माफ्रोडाइट केलिपर, लैग एंड प्वाइंट केलिपर तथा जैनी केलिपर भी कहते हैं।

3.स्क्राइबर के प्वाइंट तेज धार वाले होते है जिसके प्वाइंटों को 12 से 15 के कोण में ग्राइंडिंग करते

4. पंच प्रायः हाई कार्बन स्टील से बनाये जाते हैं। पंच के प्वाइंट की हार्डनैस 55 से 59.HRC होनी चाहिए।

5. प्रिक पंच का कोण 30°, डॉट पंच का 60° तथा सेंटर पंच का कोण 90° होता है।

6. ‘वी’ ब्लॉक का प्रयोग गोल जॉब को सहारा देने के लिए, किया जाता है।

7. कम्बीनेशन सेट का साइज उसके ब्लेड की लंबाई से लेते है। 

8. ट्रैमल का प्रयोग बड़े व्यास के वृत्त की मार्किंग के लिए किया जाता है। है

9. यदि केलिपर सही काम नहीं करता तो उसके निम्नलिखित कारण हो सकते 

(i) केलिपर की दोनों टांगे अधिक या कम टाइट हों। 

(ii) केलिपर की दोनों टांगो की लंबाई बराबर न होना।

10. किसी गोल रॉड के सिरे का केद्र निम्नलिखित विधियों से निकाल सकते हैं।

(i) जैनी केलिपर द्वारा

(ii) सरफेस गेज द्वारा 

(iii) सेंटर हैड द्वारा 

(iv) बैल पंच द्वारा

11. ऐंगल प्लेट प्रायः क्लोज्ड ग्रेन कास्ट ऑयरन से बनाई जाती है।

12. सरफेस प्लेट को बनाने के लिए कास्ट ऑयरन का चयन करने के कई कारण होते है जैसे
(i) इसे आसानी से मोल्डिंग व मशीनिंग किया जा सकता है। 

(ii) यह सस्ता पड़ता है।

(iii) यह कम घिसता है। 

13. ग्रेनाइट सरफेस प्लेट की कई विशेषताएं है जैसे
(i) ग्रेनाइट एक ठोस व स्थिर मेटीरियल हैं। 

(ii) इस पर उच्च परिशुद्धता बनाए रखी जा सकती है।

(iii) यह जंग प्रतिरोधी होती है।

14. मार्किंग ऑफ प्लेट की अपेक्षा सरफेस प्लेट अधिक परिशुद्ध होती है। 

15. यूनिवर्सल सरफेस गेज के बेस के सामने वाले सिरे पर एक ग्रूव बना होता है जिसे बनाने का मुख्य कारण बेस से नीचे मार्किंग करने के लिए पिलर को स्थान देना होता है।

16. यूनिवर्सल सरफेस गेज के कई अतिरिक्त लक्षण होते हैं जैसे

(i) इसके पिलर को किसी भी कोण में सेट किया जा सकता है।

  (ii) इसके फाइन एडजस्टमेंट शीध्रता से की जा सकती हैं।

(iii) इसको सिलण्ड्रिकल सरफेसों पर भी प्रयोग में लाया जा सकता है।

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